Vastu Tips : क्या कहती है आपके चारों ओर की दिशायें , वास्तु के अनुसार जानिये इनके बारें में

Vastu Upay : वास्तु शास्त्र के अनुसार, दिशाओं का बहुत महत्व है। प्रत्येक दिशा एक अलग तत्व, देवता और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है।
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नई दिल्ली , 18 सितम्बर 2023 : वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो ऊर्जा के प्रवाह और संतुलन का उपयोग करके हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए सिद्धांत और तकनीकों का एक समूह प्रदान करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, दिशाओं का बहुत महत्व है। प्रत्येक दिशा एक अलग तत्व, देवता और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। वास्तु के अनुसार सही दिशा में चीजों को रखने से हम अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को कम कर सकते हैं।

वास्तु शास्त्र में चार मुख्य दिशाएँ हैं: उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम। इसके अलावा, चार उप-दिशाएँ भी हैं: उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम।

उत्तर दिशा

उत्तर दिशा को वास्तु के अनुसार सबसे शुभ दिशा माना जाता है। यह दिशा कुबेर देवता का प्रतिनिधित्व करती है, जो धन और समृद्धि के देवता हैं। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार होना शुभ माना जाता है। इसके अलावा, इस दिशा में पूजा कक्ष, शयनकक्ष और अध्ययन कक्ष बनाना भी शुभ होता है।

दक्षिण दिशा

दक्षिण दिशा को वास्तु के अनुसार दूसरी सबसे शुभ दिशा माना जाता है। यह दिशा यम देवता का प्रतिनिधित्व करती है, जो न्याय और मृत्यु के देवता हैं। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार होना शुभ माना जाता है। इसके अलावा, इस दिशा में रसोई घर, स्नानघर और शौचालय बनाना भी शुभ होता है।

पूर्व दिशा

पूर्व दिशा को वास्तु के अनुसार तीसरी सबसे शुभ दिशा माना जाता है। यह दिशा सूर्य देवता का प्रतिनिधित्व करती है, जो ऊर्जा और जीवन शक्ति के देवता हैं। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार होना शुभ माना जाता है। इसके अलावा, इस दिशा में पूजा कक्ष, शयनकक्ष और अध्ययन कक्ष बनाना भी शुभ होता है।

पश्चिम दिशा

पश्चिम दिशा को वास्तु के अनुसार चौथी सबसे शुभ दिशा माना जाता है। यह दिशा वरुण देवता का प्रतिनिधित्व करती है, जो जल और वर्षा के देवता हैं। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार होना शुभ माना जाता है। इसके अलावा, इस दिशा में पूजा कक्ष, शयनकक्ष और अध्ययन कक्ष बनाना भी शुभ होता है।

उप-दिशाएँ

चार उप-दिशाएँ भी वास्तु के अनुसार बहुत महत्वपूर्ण हैं।

  • उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। यह दिशा देवताओं के राजा इंद्र देवता का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिशा में पूजा कक्ष बनाना शुभ होता है।

  • दक्षिण-पूर्व दिशा को अग्नि कोण कहा जाता है। यह दिशा अग्नि देवता का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिशा में रसोई घर बनाना शुभ होता है।

  • दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैऋत्य कोण कहा जाता है। यह दिशा राहु ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिशा में शौचालय बनाना शुभ होता है।

  • उत्तर-पश्चिम दिशा को वायव्य कोण कहा जाता है। यह दिशा वायु देवता का प्रतिनिधित्व करती है। इस दिशा में मेहमानों का कमरा बनाना शुभ होता है।

वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में सभी कमरों को सही दिशा में बनाना महत्वपूर्ण है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और नकारात्मक ऊर्जा कम होती है। जिससे घर के सदस्यों के स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और खुशी में वृद्धि होती है !

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