Raftaar Desk - J1
धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है
सावन (Saawan) महीने की शुरुआत 4 जुलाई से हो गई थी और ये भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) की भक्ति का महीना माना जाता है
मान्यता है कि इस महीने मे जो भक्त भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त कर लेता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है भगवान शिव को मानने वाले सावन के महीने में कांवड़ यात्रा (Kavar Yatra) लेकर जाते हैं और उन पर जल चढ़ाते हैं
सबसे पहले जान लेते हैं कि कांवड़ यात्रा क्या होती है दरअसल धार्मिक शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल चढ़ाने की परंपरा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है
ये जल एक पवित्र स्थान से अपने कंधे पर ले जाकर भगवान शिव को सावन की महीने में अर्पित किया जाता है इस यात्रा के दौरान भक्त बल भोले के नारे लगाते हुए पैदल यात्रा करते हैं
कांवड़ यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है शास्त्रों के मुताबित भगवान शिव के परम भक्त परशुराम ने पहली बार इस कांवड़ यात्रा को सावन के महीने में ही किया था
तभी ये कांवड़ यात्रा संतों ने शुरू की और सबसे पहले साल 1960 में सामने आई थी. इस यात्रा में पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं
इसके अलावा एक और मान्यता है कि इस यात्रा की शुरूआत श्रवण कुमार ने की थी श्रवण कुमार ने अपने माता -पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उनको कांवड़ में बैठाकर लेकर आए और हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया था
इसके साथ ही श्रवण कुमार वापस आते वक्त गंगाजल भी लेकर आए थे और इसी जल से उन्होंने भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था