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Money Laundering: PMLA के तहत ED की शक्तियों की समीक्षा के लिए SC तैयार, 22 नवंबर को होगी सुनवाई

नई दिल्ली, हि.स.। सुप्रीम कोर्ट पीएमएलए के तहत ईडी की शक्तियों की समीक्षा के लिए तैयार हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की समीक्षा न किए जाने की केंद्र सरकार की मांग ठुकरा दी। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों की जांच राष्ट्रीय हित में हो सकती है। हम ईडी की शक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार करेंगे। इस मामले पर अगली सुनवाई 22 नवंबर को होगी।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने जाने क्या कहा?

उल्लेखनीय है कि 25 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने कहा था कि हम सिर्फ दो पहलुओं को दोबारा विचार करने लायक मानते हैं। कोर्ट ने कहा था कि ईसीआईआर (ईडी की तरफ से दर्ज एफआईआर) की रिपोर्ट आरोपित को न देने का प्रावधान और खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा आरोपित पर होने के प्रावधान पर दोबारा सुनवाई करने की जरूरत है।

कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों को चुनौती देते हुए दो सौ के आसपास याचिकाएं दायर की गई थीं जिस पर 27 जुलाई को जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया था।

कोर्ट ने पूछताछ के लिए गवाहों...

सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 को अपने फैसले में ईडी की शक्ति और गिरफ्तारी के अधिकार को बहाल रखने का आदेश दिया था। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईडी को मिले विशेषाधिकारों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने पूछताछ के लिए गवाहों, आरोपितों को समन, संपत्ति जब्त करने, छापा डालने, गिरफ्तार करने और जमानत की सख्त शर्तों को बरकरार रखा था।

धारा 19 और 44 को चुनौती देने की दलीलें दमदार नहीं

कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में किए गए संशोधन को वित्त विधेयक की तरह पारित करने के खिलाफ मामले पर बड़ी बेंच फैसला करेगी। कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 3 का दायरा बड़ा है। धारा 5 संवैधानिक रूप से वैध है। धारा 19 और 44 को चुनौती देने की दलीलें दमदार नहीं है।

ईसीआईआर एफआईआर की तरह नहीं है और यह ईडी का आंतरिक दस्तावेज है।एफआईआर दर्ज नहीं होने पर भी संपत्ति को जब्त करने से रोका नहीं जा सकता है। एफआईआर की तरह ईसीआईआर आरोपित को उपलब्ध कराना बाध्यकारी नहीं है। जब आरोपित स्पेशल कोर्ट के समक्ष हो तो वह दस्तावेज की मांग कर सकता है।

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