ऋतुराज बसंत, नाम लेते ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है। मन को शीतल करतीं मंद-मंद हवा, गर्म रजाई सी धूप, पेड़ों पर नई-नई कोपलें, फूलों पर बैठती तो कभी आसमान में दौड़ लगाती तितलियां, भंवरों का गुंजन और भी न जाने कैसे-कैसे दृश्य जो कामदेव की मादकता को भी नई क्लिक »-www.prabhasakshi.com