रघुवंश बाबू की दो चिट्ठियां, अलग-अलग मायने
रघुवंश बाबू की दो चिट्ठियां, अलग-अलग मायने 
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रघुवंश बाबू की दो चिट्ठियां, अलग-अलग मायने

Raftaar Desk - P2

मुरली मनोहर श्रीवास्तव पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन की खबर ने देश को गमगीन कर दिया। सभी जगह चर्चाएं होने लगी सादगी के उस नायक की जिसने राजनीति को कभी सत्ता सुख नहीं बनाया बल्कि इसे सेवाभाव के रूप में जीते रहे। लालू प्रसाद के अच्छे दिनों से लेकर बुरे दिनों में भी साथ निभाया मगर इधर कुछ दिनों से राजद की कार्यशैली उन्हें रास नहीं आ रही थी। इसी वजह से उन्होंने पहले दल के पद और बाद में दल से ही इस्तीफा दे दिया। हालांकि लालू ने उनके इस्तीफे को मंजूर नहीं किया और लिखा कि आप कहीं नहीं जा रहे हैं। मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। रघुवंश बाबू नहीं लौटने वाली अनंत यात्रा पर निकल गए। जीवन और मौत से जूझ रहे ‘ब्रह्म बाबा’ के नाम से लोकप्रिय रघुवंश बाबू ने दिल्ली में एम्स से दो चिट्ठियां लिखी। एक लालू के नाम और एक नीतीश के नाम। दोनों चिट्ठियों के अलग-अलग मायने हैं। इसकी गहरायी में जाकर सोचने का विषय है। एक चिट्ठी लालू से रिश्ते तोड़ने के लिए तो दूसरी नीतीश कुमार को, जिनसे उन्हें उम्मीदें थी, कि जो उनका सपना है उसे वही पूरा कर सकते हैं। रघुवंश बाबू के निधन पर प्रधानमंत्री ने भी अपील कर दी कि जो रघुवंश बाबू की आखिरी ख्वाहिश है, नीतीश जी उसको पूरा कीजिए, हम भी आपके साथ हैं। प्रोफेसर से राजनेता बने डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान एक प्रखर समाजवादी नेता के रूप में रही। ईमानदार, बेदाग और बेबाक अंदाज वाले रघुवंश बाबू को पढ़ने और लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का शौक था। रघुवंश बाबू बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रोफेसर बने। वर्ष 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित का पाठ पढ़ाते रहे। रघुवंश बाबू वैसे तो कई बार जेल गए मगर पहली बार टीचर्स मूवमेंट के दौरान 1970 में जेल गए। कर्पूरी सरकार में पहली बार मंत्री बने कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। अपनी बेबाकी और कार्यशैली की वजह से रघुवंश बाबू उस समय के जमीनी और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर से काफी प्रभावित हुए और उनके साथ हो लिए। इसके बाद वर्ष 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल चले गए। इसके बाद तो उनके जेल आने-जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया। कॉलेज में गणित के कलकुलेशन ने इन्हें राजनीति का भी सफल मैथेमैटिशियन बना दिया। तभी तो वर्ष 1977 में पहली बार रघुवंश प्रसाद बेलसंड से विधायक चुन लिए गए और यह सिलसिला 1985 जारी रहा। लेकिन 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन से रघुवंश बाबू काफी आहत हुए। लालू और रघुवंश जब करीब आए कर्पूरी ठाकुर के जाने के बाद उनकी विरासत को लेकर विवादों का बाजार गर्म हुआ। लालू प्रसाद यादव, कर्पूरी के खाली जूतों पर अपना दावा जता रहे थे। इस दौर में लालू प्रसाद का डॉ.रघुवंश प्रसाद सिंह ने साथ दिया और यहीं से शुरू हुई दोनों नेताओं के बीच दोस्ती। वर्ष 1990 का दौर था, बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुआ। कांग्रेस नेता दिग्विजय प्रताप सिंह से बहुत कम मतों से रघुवंश प्रसाद सिंह चुनाव हार गए। हालांकि उस हार के लिए रघुवंश प्रसाद सिंह ने जनता दल के भीतर के ही कई नेताओं को जिम्मेदार ठहराया। रघुवंश बाबू चुनाव तो हार गए मगर जनता दल को बड़ी कामयाबी मिली और लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बन गए। लालू प्रसाद ने अपने साथी को नहीं छोड़ा और उन्हें विधान पार्षद तो बनाया ही वर्ष 1995 में अपने मंत्रिमंडल में उन्हें ऊर्जा और पुनर्वास मंत्री बनाकर दोस्ती निभायी। मनरेगा कानून के असली शिल्पकार बिहार की सियासत में अपनी अलग पहचान कायम करने वाले रघुवंश बाबू देश में भी अपनी कार्यशैली और गंवई अंदाज में बोलने के लिए जाने जाते रहे। वर्ष 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में लालू के कहने पर उन्होंने वैशाली से चुनाव लड़ा और पूर्व मंत्री वृषण पटेल को मात देकर दिल्ली आसीन हुए। केंद्र में जनता दल की सरकार आयी, एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने तो बिहार कोटे से रघुवंश बाबू पर पशुपालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। मगर 1997 में देवेगौड़ा की कुर्सी चली गई और आईके गुजराल प्रधानमंत्री बने तो रघुवंश बाबू को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय में भेज दिया गया। भारत में बेरोज़गारों को साल में 100 दिन रोज़गार मुहैया कराने वाले क़ानून को ऐतिहासिक माना गया था। यूपीए दो को जब फिर से 2009 में जीत मिली तो उसमें मनरेगा की अहम भूमिका थी। सवर्ण होकर भी पिछड़ों के प्रिय जहां सियासत में अगड़े-पिछड़े की राजनीति हो रही है, वहीं रघुवंश बाबू ऐसे नेता थे जो सवर्ण समुदाय से आने के बावजूद पिछड़े समाज में काफी प्रभावी रहे। रघुवंश प्रसाद सिंह राजद में सबसे पढ़े-लिखे नेताओं में से एक थे। रघुवंश सिंह बिहार की वैशाली लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव लड़ते थे। हालांकि पिछले दो चुनावों से वो हार रहे थे। आप इतनी दूर चले गए राजद सुप्रीमो लालू यादव ने मार्मिक ट्वीट किया है। लालू यादव ने ट्वीट कर लिखा है कि प्रिय रघुवंश बाबू ये आपने क्या किया? मैंने परसो ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे लेकिन आप इतनी दूर चले गए। निःशब्द हूं बहुत दुखी हूं, बहुत याद आएंगे। रघुवंश की चिट्ठी नीतीश के नाम रघुवंश बाबू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर मांग रखी की, 15 अगस्त को मुख्यमंत्री पटना और राज्यपाल विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली में राष्ट्र ध्वज फहराएं। 26 जनवरी को राज्यपाल पटना और मुख्यमंत्री वैशाली गढ़ के मैदान में राष्ट्रध्वज फहराएं। मुख्यमंत्री को 26 जनवरी, 2021 को वैशाली में राष्ट्रध्वज फहराने की मांग की थी। आगे उन्होंने मनरेगा कानून में सरकारी और एससी-एसटी की जमीन में काम का प्रबंध है, उस खंड में आम किसानों की जमीन में भी काम होगा, जोड़ दिया जाए। इस आशय का अध्यादेश तुरंत लागू कर आने वाले आचार संहिता से बचा जाए। रघुवंश प्रसाद ने भगवान बुद्ध के पवित्र भिक्षापात्र को अफगानिस्तान के काबुल से वैशाली लाने की भी मांग की थी। वहीं उन्होंने वैशाली के सभी तालाबों को जल-जीवन-हरियाली अभियान से जोड़ने का आग्रह किया था। गांधी सेतु पर गेट बनाने और उसपर 'विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली' लिखने का आग्रह किया था। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)-hindusthansamachar.in