भारतीय चिंतन से ही हो सकता है देश और दुनिया का विकास: बजरंगलाल गुप्ता
भारतीय चिंतन से ही हो सकता है देश और दुनिया का विकास: बजरंगलाल गुप्ता 
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भारतीय चिंतन से ही हो सकता है देश और दुनिया का विकास: बजरंगलाल गुप्ता

Raftaar Desk - P2

पवन कुमार अरविंद नई दिल्ली, 16 अगस्त (हि.स.) । ख्यातिलब्ध अर्थशास्त्री एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र संघचालक डॉ. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा है कि भारतीय चिंतन से ही देश और दुनिया का विकास हो सकता है। यही बात दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी का भी मानना था और अब यही बात दुनिया के विद्वान भी कहने लगे हैं। डाॅ. गुप्ता 'दत्तोपन्त ठेंगड़ी जन्मशताब्दी वर्ष' के उपलक्ष्य में आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला के छठे दिन रविवार को "डेवलपमेंट ऐज एन्विज़िज्ड बाय ठेंगड़ी जी" विषय पर अपने विचार प्रस्तुत कर रहे थे। व्याख्यानमाला का आयोजन भारतीय मजदूर संघ और दत्तोपन्त ठेंगड़ी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है। डाॅ. गुप्ता ने कहा कि विकास की पश्चिमी मॉडल सिर्फ भोगवादी संस्कृति को बढ़ावा देता है। इसी कारण पश्चिम के देशों में साधन और संसाधन तो पर्याप्त हैं, लेकिन सुख और शांति का अभाव है। प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम दोहन ही पश्चिमी विकास माॅडल का आधार है। जबकि विकास की भारतीय अवधारणा सिर्फ आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति के लिए और प्रकृति के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की बात करता है। उन्होंने मैक्सिको के प्रसिद्ध विद्वान् ईवन इलिच का उल्लेख किया और कहा कि इलिच ने स्पष्ट रूप से कहा था कि विकास का भारतीय चिंतन श्रेष्ठ है। इसमें मानव समाज की सुख-शांति भी निहित है। डाॅ. गुप्ता ने ठेंगड़ी जी का उल्लेख करते हुए कहा कि पश्चिमी पैराडाइम से बाहर आकर ही हम भारतीय चिंतन को प्रारंभ कर सकते हैं। पश्चिमी प्रतिमान खंडित, अप्रासंगिक और असंगत है। उन्होंने कहा कि पश्चिम का विकास माॅडल बार-बार फेल होता रहा, लेकिन हम बार-बार उसी की नकल करते रहे। यह अपने में आश्चर्यजनक है। उन्होंने कहा कि ठेंगड़ी जी की सलाह पर अमेरिका ने अपने यहां न्यू ग्रीन पालिसी शुरू की। इसका वहां कुछ प्रभाव भी हुआ, लेकिन हम लोगों ने भारत के संदर्भ में विचार किए बिना ही उसको अपना लिया। उसके दुष्परिणाम भी हमको देखने को मिले। डाॅ. बजरंगलाल गुप्ता ने कहा कि ठेंगड़ी जी जीडीपी पर बार-बार सवाल उठाते थे। वह इसकी गणना के तरीके को बदलने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि जीडीपी की गणना आधी-अधूरी है इसलिए इसके आधार पर विकास का स्तर मापना भी दोषपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जीडीपी पर आधारित मौजूदा रोजगार विहीन विकास दर किसी काम की नहीं है। यह न हमारा भला करेगा और न ही देश का भला करेगा। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in