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देश

दम तोड़ते माओवाद का एकमात्र उद्देश्य धन की उगाही

Raftaar Desk - P2

उपेन्द्र नाथ राय माओवाद का सिद्धांत अब वैसे ही रह गया है, जैसे आज की राजनीति सिद्धांतविहीन हो गयी है। बस्तर में कहने के लिए माओवादी लड़ते तो आदिवासियों के लिए हैं, लेकिन हत्याएं भी सर्वाधिक उन्हीं की करते हैं। उनके सिद्धांत से विमुख हुए नहीं कि उनकी नृशंस हत्या कर पुलिस मुखबिर होने का पर्चा फेंक देते हैं। अब चारों तरफ दम तोड़ते माओवाद का एकमात्र उद्देश्य रह गया है धन की वसूली। हत्या भी धन वसूली के मौसम को देखकर किया जाता है। यदि माओवादी गतिविधियों को देखें तो बीजापुर और सुकमा इनकी मांद कह सकते हैं। अब चारों तरफ से सिमटते हुए वहां अभी इनकी अच्छी पैठ रह गयी है। इनके द्वारा अंजाम दिये गए घटनाओं पर ध्यान दें तो दिसम्बर से मई के बीच ज्यादातर घटनाओं को अंजाम देते हैं। इसका कारण है, तेंदू पत्ता के हितग्राहियों से अवैध वसूली। जबतक अपनी पकड़ आदिवासियों में दिखाएंगे नहीं, तब तक यह वसूली नहीं हो सकती। बस्तर संभाग में सबसे ज्यादा माओवादियों की अवैध वसूली तेंदू पत्ता के हितग्राहियों से ही है। इसको कुछ हद तक तोड़ने के लिए रमन सरकार ने सीधा हितग्राहियों के खाते में पैसा भेजने का फैसला किया। उस समय भी माओवादियों के उकसावे पर ही वहां के स्थानीय लोगों ने सीधे पैसा भेजने का विरोध किया था। कई जगह धरना-प्रदर्शन हुए लेकिन रमन सरकार पीछे नहीं हटी, क्योंकि उस समय भी इंटेलिजेंस रिपोर्ट यही थी कि यह सब माओवादियों के उकसावे पर हो रहा है। पहले माओवादियों द्वारा कराये जाने वाले धरना-प्रदर्शन पर बात कर लें। बस्तर संभाग में माओवादियों का एक हथियार आम लोगों से धरना-प्रदर्शन कराना भी है, जिससे कई बार सरकार को झुक जाना पड़ता है। हकीकत यह है कि माओवादियों का फरमान आता है, अमुक मुद्दे को उठाना है। जैसे लौह खदानों के खिलाफ प्रदर्शन। इन अधिकांश प्रदर्शनों में इंटेलिजेंस के मुताबिक माओवादियों का हाथ होता है। जब उनकी ठीक-ठाक धन उगाही हो जाती है तो प्रदर्शन बंद कर दिये जाते हैं। कई बार तो सड़क बनने के खिलाफ भी लोग सड़कों पर उतर आये हैं। वहीं तेंदू पत्ता से वसूली की बात करें तो पहले समितियों को पैसा दे दिया जाता था और समितियां हितग्राहियों को नगद पैसा आवंटित करती थीं। इसमें समिति से ही सीधा माओवादियों को कमीशन मिल जाता था और उन्हें जाने वाला पैसा काटकर हितग्राही को दे दिया था लेकिन अब सीधा खाते में जाने से थोड़ा रास्ता उल्टा हो गया। वसूली तो बंद नहीं हुई लेकिन कुछ लगाम अवश्य लगा है। पिछले वर्षों की देखें तो माओवादियों ने प्रति कार्ड 100 रुपये की वसूली की थी। अब कांकेर जिले में ही कार्ड धारकों की संख्या छह लाख से ज्यादा है अर्थात लगभग छह करोड़ रुपये माओवादियों की वसूली थी। यह तो एक जिले का आंकड़ा है। सूकमा, बीजापुर, नरायणपुर जिलों की स्थिति कुछ और ही है। इनके द्वारा घटनाओं को अंजाम देने की गतिविधि पर नजर डालें तो 15 मार्च 2007 को बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस कैंप पर आधी रात को हुआ हमला हो या 09 अप्रैल 2019 को दंतेवाड़ा लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान से ठीक पहले नक्सलियों का भाजपा विधायक पर हमला। अधिकांश घटनाएं फरवरी से जून तक माओवादियों द्वारा की जाती हैं। इसका कारण लोगों में दहशत पैदाकर उनसे पैसे की वसूली ही है। सबसे बड़ी बात है कि ये जल, जंगल व जमीन की बात करते हैं लेकिन हकीकत यह है कि जल, जंगल, जमीन पर खुद छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज का हक छीन लेते हैं। इनकी 24 लोगों की उच्च समिति में भी सिर्फ दो को छोड़कर सभी तेलंगाना के हैं। वसूली गयी धनराशि भी पूरी तेलंगाना के लोगों के पास चली जाती है। मौतों का आंकड़ा भी देखें तो सर्वाधिक आदिवासी समाज के लोगों की यही लोग नृसंश्य हत्या करते हैं। मौतों के आंकड़ों में 70 प्रतिशत आदिवासी समाज के ही होते हैं। यदि किसी को किसी समाज से लगाव है तो क्या वह उसकी हत्या कर सकता है। कतई नहीं। हकीकत भी यही है कि माओवादियों को किसी समाज से लगाव नहीं है। उन्हें पैसे की वसूली से लगाव है। घटनाओं को भी उन्हीं के मद्देनजर अंजाम दिया जाता है। तेंदू पत्ता से माओवादियों की सबसे ज्यादा वसूली है। इस कारण मौसम से पहले घटना कारित कर लोगों के बीच दहशत फैलाने की हर साल कोशिश करते हैं। वैसे जमीनी हकीकत देखी जाय तो अब इनका बोरिया बिस्तर सिमट रहा है। सिर्फ छटपटाहट भर रह गयी है। हार्डकोर संगठन में तो कमी नहीं कही जा सकती लेकिन जनताना, माझा पार्टी आदि इनके संगठन टूट रहे हैं। आज से दस वर्ष पूर्व तक उत्तर बस्तर के दुर्गूकोंदल ब्लाक में भी इन्होंने कई आदिवासी समाज के लोगों की हत्याएं की और इनके फरमान के आगे परिजन थाने तक पहुंचने की हिम्मत नहीं कर पाये लेकिन आज ऐसा नहीं है। कांकेर का दुर्गूकोंदल इलाका अब लगभग इनसे मुक्ति पा चुका है। यह एक उदाहरण मात्र है। इस तरह से एक-एक इलाका कर इनसे मुक्ति मिल रही है। लोग जागरूक हो रहे हैं। सरकार विकास की ओर बढ़ रही है लेकिन अभी समय है। (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)