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शिक्षा में आरक्षण समाप्ति के लिए समय सीमा तय करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

Raftaar Desk - P2

नई दिल्ली, 9 जुलाई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक वकील की ओर से दायर उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें शिक्षा में जाति-आधारित आरक्षण की समाप्ति के लिए समय सीमा तय करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि अदालत याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है। सुभाष विजयरन, जो एक एमबीबीएस डॉक्टर भी हैं, द्वारा दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि आरक्षण में अधिक मेधावी उम्मीदवार की सीट कम मेधावी को दी जाती है और यह नीति राष्ट्र की प्रगति को रोकने के लिए सीधे-तौर पर जिम्मेदार है। दलील दी गई थी कि आज के समय में लोग पिछड़ी जाति के टैग के लिए लड़ते हैं और खून बहाते हैं। याचिका में कहा गया है, अब, हमारे पास अच्छे डॉक्टर, वकील, इंजीनियर हैं, जो आरक्षण के माध्यम से पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए अपने पिछड़े टैग को दिखाते हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय महत्व के संस्थान (आईएनआई) जैसे एम्स, एनएलयू, आईआईटी, आईआईएम आदि को भी नहीं बख्शा जाता है। हर साल उनकी बहुत कम सीटों में से 50 प्रतिशत आरक्षण की वेदी पर बलिदान कर दिया जाता है। यह आखिर कब तक जारी रहेगा? याचिका में कहा गया है कि यदि उम्मीदवार को खुले में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाया जाता है, तो यह उस उम्मीदवार के लिए एक सशक्त अभ्यास होगा और साथ ही यह राष्ट्र की प्रगति में भी योगदान देगा। याचिकाकर्ता ने अशोक कुमार ठाकुर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अधिकांश न्यायाधीशों का विचार था कि शिक्षा में आरक्षण जारी रखने की आवश्यकता की समीक्षा हर पांच साल में की जानी चाहिए। हालांकि, आज तक ऐसी कोई समीक्षा नहीं की गई है। अदालत द्वारा याचिका पर विचार करने से इनकार करने के बाद, याचिकाकर्ता ने इसे वापस ले लिया। --आईएएनएस एकेके/एएनएम