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बोकारो में दुर्लभ नस्ल की सफेद बाघिन गंगा ने दम तोड़ा, मायूस है स्टील सिटी

Raftaar Desk - P2

बोकारो/ रांची, 1 अप्रैल (आईएएनएस)। बोकारो स्थित जवाहर लाल नेहरू जैविक उद्यान में दुर्लभ नस्ल की सफेद बाघिन गंगा ने शुक्रवार को दम तोड़ दिया। वह 127 एकड़ में फैले इस उद्यान की आखिरी बाघिन थी। यहां आने वाले दर्शकों-पर्यटकों के लिए वर्षों तक रोमांच और आकर्षण का केंद्र बनी रही। जैविक उद्यान प्रबंधन का कहना है कि गंगा अपनी उम्र पूरी कर चुकी थी। उसकी मौत की वजह जानने के लिए उसके शव का पोस्टमार्टम कराया जा रहा है। गंगा के निधन पर बोकारो के पशुप्रेमी बेहद मायूस हैं। इस सफेद बाघिन का जन्म आठ अगस्त 2006 को छत्तीसगढ़ के भिलाई स्थित चिड़ियाघर में हुआ था। वहां कुछ दिन रहने के बाद उसे बोकारो लाया गया। बोकारो स्टील सिटीका बच्चा-बच्चा जानता है कि इस जैविक उद्यान में गंगा के होने की अहमियत क्या थी। उसकी एक झलक पाने के लिए लोग यहां खिंचे चले आते थे। अमूमन बाघों का जीवन काल 16 से 18 वर्ष का ही होता है। इस लिहाज से गंगा की मौत स्वाभाविक मानी जा रही है। बूढ़ी हो चुकी गंगा इन दिनों तकलीफ में थी। उसके दांत चले गये थे और उसे खाने में काफी तकलीफ होती थी। जैविक उद्यान के कर्मचारी बकरी के मांस के छोटे-छोटे टुकड़े करके उसे खिलाते थे। जब वह यहां लाई गई थी तब वह बेहद खूंखार थी। देखभाल करने वाले कर्मियों का उसके पास जाना मुश्किल होता था। दर्शकों को देखकर वह उन पर झपट्टा मारने की कोशिश करती थी। उम्र के साथ साथ उसके स्वभाव में बदलाव हुआ और वह शांत हो गई। पिछले कई वर्षों से वह इतनी शांत थी जैसे कोई पालतू जानवर हो। गंगा बूढ़ी तो हो ही चुकी थी, अकेलेपन से भी जूझ रही थी। गंगा जब यहां आई थी तो उसके साथ उसका एक पुरुष साथी भी लाया गया था। नाम था सतपुड़ा। गंगा और सतपुड़ा ने यहां एक साथ रहते हुए अपना परिवार भी बढ़ाया था। गंगा ने तीन शावकों को जन्म दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से कुछ ही दिनों में तीनों शावकों और उसके पुरुष साथी सतपुड़ा की 2012 में एक-एक करके मृत्यु हो गयी। शावकों और पुरुष साथी को खोने के बाद गंगा का स्वभाव जरूर बदला, लेकिन वह यहां आने वाले लोगों को अपनी अदाओं से लुभाती रही। 2014-15 में चिड़ियाघर के अधिकारियों ने सफेद खूबसूरत बाघिन गंगा के अकेलेपन को देखते हुए उसके लिए साथी की तलाश करने का प्रयास किया था, लेकिन सफलता नहीं मिली। ओडिशा के नंदन कानन, मैत्री बाग, भिलाई, कानपुर, हैदराबाद के चिड़ियाघरों के अलावा देशभर के 10 से ज्यादा चिड़ियाघरों को पत्र लिखे गये थे, लेकिन उसके लिए कोई साथी नहीं मिला। आज की तारीख में इस जैविक उद्यान में न तो कोई बाघ बचा है न शेर। पिछले 15वर्षों में यहां आठ बाघों की मौत हो चुकी है। मरने वाले आठ बाघों में से दो बाघिन, पांच नर बाघ और तीन शावक थे। बोकारो के प्रमुख चिकित्सक डॉ रणधीर कुमार कहते हैं कि यहां की आखिरी बाघिन गंगा की मौत बोकारो के लोगों के लिए सदमे की तरह है। --आईएएनएस एसएनसी/एएनएम