डॉ. प्रभात ओझा जब भी जम्मू-कश्मीर के बारे में अच्छी खबर होती है, पाकिस्तान बेचैन हो उठता है। राज्य के राजनीतिक दलों के नेताओं से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बातचीत की खबर आए, उसके पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को यह जानकारी दी कि भारत इस राज्य में कुछ बड़ा करने वाला है। कुरैशी ने फरियाद भी कर डाली कि संयुक्त राष्ट्र संघ को अपने प्रस्तावों को लागू करने की पहल करनी चाहिए। पाकिस्तानी विदेश मंत्री दरअसल, उन्हीं प्रस्तावों की बात कर रहे हैं, जो कश्मीर पर 1948 के पाकिस्तानी हमले के बाद निष्प्रभावी हो चुके हैं। आजादी के ठीक बाद उस लड़ाई, फिर 1965 और 1971 के युद्ध में पराजय से तिलमिलाये पाकिस्तान के दर्द कश्मीर के नाम पर उभर आते हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री फिर से भूल रहे हैं कि जम्मू कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है और राज्य के लोगों ने देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में कई बार अपने लिए निर्वाचित सरकार बनाई है। सच यह है कि कश्मीर पर पाकिस्तान का राग अब रस्मी बन चुका है। कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे इस पड़ोसी देश को अपने यहां लोगों की भावनाओं को उभार कर ही गुजारा करना पड़ता है। इसके लिए कश्मीर बड़ा बहाना है। पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू-कश्मीर को विभाजित कर दो केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने से तो पाकिस्तान के हाथ से जैसे तोते ही उड़ गए हैं। इससे देश में ही नहीं, पूरी दुनिया में यह धारणा पक्की हो चुकी है कि भारत का हर क्षेत्र एकसमान नागरिक अधिकारों वाला है। फिर पाकिस्तान को नरेन्द्र मोदी सरकार से इसलिए भी कुछ अधिक परेशानी है कि जो काम 70 साल से भी अधिक समय से नहीं हो पा रहा था, उसने कश्मीर में एक झटके में कर दिखाया। अब आगे उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की पहल से केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करते समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया था कि जम्मू कश्मीर को जल्द ही फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा देते हुए उसकी विधानसभा बहाल कर दी जायेगी। लगता है कि सरकार उस दिशा में आगे बढ़ रही है। चुनाव के पहले विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन आदि पर केंद्र सरकार राज्य के दलों से भी बात कर लेना चाहती है। इस चर्चा के बहाने ही पांच अगस्त,2019 के बाद नजरबंद कर दिए गए नेताओं को सहज भी किया जा सकेगा। अब ये नेता मुक्त कर दिए गए हैं। श्रीनगर के गुपकार रोड पर हुई बैठक में सात प्रमुख विपक्षी दलों ने पीपल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (पीएजीडी) बनाया था। गुपकार ग्रुप फिर से राज्य के विशेष दर्जे को बहाल करने की मांग करता रहता है। मुमकिन है कि गुपकार बहोने वाली बैठक में भी यह मांग उठाए और केंद्र सरकार उसे चुनाव के जरिए अपनी मांग रखने पर राजी करने की कोशिश करे। खबर तो यह भी है कि दो की जगह तीन प्रदेश बनाते हुए जम्मू और कश्मीर घाटी को भी अलग-अलग राज्य बनाया जाय। लद्दाख अलग से केंद्र शासित है ही। वैसे पहले से बने जम्मू- कश्मीर को ही पूर्ण राज्य बनाते हुए चुनाव की सम्भावना अधिक दिखती है। जो भी हो, पूरे मसले पर केंद्र सरकार फूंक-फूंककर चलना चाहती है। इसीलिए पहले गृहमंत्री शाह ने उप राज्यपाल मनोज सिन्हा से अब तक की प्रगति पर बात की। फिर केंद्रीय और राज्य सुरक्षा से जुड़े संगठनों की बैठक हुई। अमित शाह ने जो बैठक की, उसमें उनके अलावा उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, गृह सचिव अजय भल्ला, आईबी निदेशक अरविंद कुमार, रॉ मुखिया समंत कुमार गोयल, सीआरपीएफ के महानिदेशक कुलदीप सिंह और जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह भी शामिल थे। अब जो खबर आ रही हैं, उसके अनुसार राज्य से जुड़े 14 नेताओं को 24 जून को प्रधानमंत्री आवास पर बैठक के लिए बुलाया गया है। इनमें चार पूर्व मुख्यमंत्री फारूख और उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और गुलाम नबी आजाद भी शामिल हैं। संभव है कि पीएम से मिलने के पहले ये नेता कोई रणनीति बनाएं, वैसे गुपकार गठबंधन बातचीत के लिए कुछ समय पहल से ही सकारात्मक संदेश देता रहा है। कुल मिलाकर भारत में हो रही अनुकूलता से पाकिस्तान सहज नहीं रहता। फिलहाल तो उसने यही रुख अपनाया है। (लेखक हिन्दुस्थान समाचार में न्यूज एडिटर हैं।)