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तमिलनाडु में नीट परीक्षा देने वाले छात्रों का मनोबल बढ़ाने के लिए हेल्पलाइन की स्थापना

Raftaar Desk - P2

चेन्नई, 28 सितम्बर (आईएएनएस)। तमिलनाडु सरकार द्वारा राष्ट्रीय पात्रता के साथ- साथ प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) देने वाले छात्रों को परामर्श देने के लिए स्थापित 104 स्वास्थ्य हेल्पलाइन में पाया गया है कि दोबारा परीक्षा देने वाले छात्रों को सबसे अधिक चिंता है। काउंसलर ने कहा कि जिन छात्रों को सबसे ज्यादा चिंता है, उनमें से 60 से 70 प्रतिशत ऐसे छात्र थे, जिन्होंने नीट का दूसरी बार एग्जाम दिया है। तीन दिनों में तीन छात्रों के आत्महत्या करने के बाद 104 स्वास्थ्य हेल्पलाइन की स्थापना की गई थी। जहां एक छात्र ने नीट के दिन ऐसा कदम उठाया था, वहीं दो अन्य ने परीक्षा के बाद अपनी जान दे दी। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने हेल्पलाइन की स्थापना की, जिसके माध्यम से काउंसलर तमिलनाडु के उन सभी 1,10,971 उम्मीदवारों तक पहुंचेंगे, जिन्होंने नीट-यूजी की परीक्षा दी थी। राज्य ने इन छात्रों को परामर्श प्रदान करने के लिए 60 मनोवैज्ञानिक और 25 मनोचिकित्सकों को लगाया है। सभी 1,10,971 छात्रों के नंबर जुटा लिये गये हैं और उनसे संपर्क किया गया। 104 स्वास्थ्य हेल्पलाइन से जुड़े मनोवैज्ञानिक पेरियासामी ने आईएएनएस को बताया, नीट देने वाले बड़ी संख्या में छात्र तनावग्रस्त पाए गए और इसमें से हमने पाया कि सबसे ज्यादा तनाव वाले छात्र वे थे, जिन्होंने दोबारा टेस्ट दिया था। दोबारा परीक्षा देने वाले आम तौर पर अपनी नियमित कक्षाओं को छोड़ कर परीक्षा की तैयारी के लिए पूरा वर्ष समर्पित करते हैं और इसलिए परीक्षा में बैठने के बाद वे बहुत तनाव में होंगे। काउंसलर ने कहा कि 200 छात्रों को हाई रिस्क की श्रेणी में रखा गया है और काउंसलर उन्हें कोई भी बड़ा कदम उठाने से रोकने के लिए नियमित रूप से उनके संपर्क में हैं। 104 स्वास्थ्य हेल्पलाइन के प्रमुख डॉ सरवनन ने आईएएनएस को बताया, एनईईटी के 1,10,971 उम्मीदवारों में से, 45,000 ने हमारे बार-बार कॉल करने के बाद भी जवाब नहीं दिया, लेकिन हम उन्हें कॉल करना और उन्हें सलाह देना जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि सभी छात्रों से फिर से संपर्क किया जाएगा और यह प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी, जब तक छात्र कॉल का जवाब नहीं देते। उन्होंने कहा कि परीक्षा परिणाम आने तक कॉल जारी रहेगी। सरवनन ने कहा, ऐसे अधिकांश छात्र अपने परिवार के पहली बार स्नातक होंगे और वे अधिक तनाव का अनुभव करते हैं। काउंसलर हर वैकल्पिक दिन उच्च जोखिम वाले छात्रों से संपर्क कर रहे हैं और हम उनके माता-पिता के संपर्क में भी हैं। उन्होंने कहा कि इन छात्रों का विवरण जिला प्रशासन को प्रदान किया जाता है, जहां वे रहते हैं और अधिकारी इन छात्रों के घरों का दौरा करेंगे। चेन्नई के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के मनोचिकित्सा के सहायक प्रोफेसर डॉ वेंकटेश मदनकुमार ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, कुछ छात्र आसानी से परीक्षा दे रहे हैं और उन्होंने कहा कि अगर वे इसे क्रैक नहीं कर पाए, तो वे किसी अन्य करियर का विकल्प चुने। हालांकि, 15 फीसदी छात्रों ने कहा कि दवा ही उनका जीवन है। काउंसलर ने यह भी कहा कि कुछ छात्र जो पहली बार उपस्थित हुए हैं। वे भी बहुत तनाव में हैं और आंकड़ों के अनुसार ये छात्र वे हैं जो सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से हैं। मदुरै के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सा के प्रोफेसर डॉ रजनी ने आईएएनएस को बताया, छात्रों को ठीक से सिखाया जाना चाहिए कि दवा जीवन का अंत नहीं है और ना ही यह परीक्षा है और उनमें अधिक क्षमता है और वे अन्य क्षेत्रों के लिए कोशिश कर सकते हैं, यदि वे परीक्षाओं को क्रैक करने में सक्षम नहीं होते। यह उन्हें सूचित करना पड़ेगा। 104 पर काउंसलर ने कहा कि तनाव में रहने वाले ज्यादातर छात्र चाहते हैं कि कोई उनकी बात सुने। एक मनोवैज्ञानिक ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, हम उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं कि हम उनकी बात सुनने के लिए हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे। --आईएएनएस एचके/आरजेएस