सुग्रीव श्रीराम जी की बात सुनकर एक बार अधमरा-सा तो हो ही गया था। गला मानों रेगिस्तान के टीले की तरह सूख गया था। जुबान तो गले में जैसे सरक भी नहीं पा रही थी। केवल उसकी खुली सपाट आँखें उसकी हतप्रभता बयां करने के लिए काफी थी। श्रीराम जी क्लिक »-www.prabhasakshi.com