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देश

दान उत्सव- दिल की सुनने, कुछ करने का समय !

Raftaar Desk - P2

नई दिल्ली, 05 अक्टूबर(आईएएनएस)। त्योहारों का मौसम जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे हमारे आस-पास की ऊर्जा और उत्साह पूरी तरह से बदल गया है। लेकिन इससे पहले कि हम दुर्गा पूजा, दिवाली, क्रिसमस आदि के मौसम में जाएं। एक और त्योहार है जिसे देश मनाने के लिए तैयार है, वह है- दान उत्सव, भारत का अपना खुद का त्योहार है, जो अब एक दशक से अधिक पुराना हो चला है। हर साल महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर से शुरू होने वाले सभी क्षेत्रों के लोग एक सप्ताह के लंबे उत्सव के लिए एक साथ आते हैं। इस अनूठे उत्सव के संस्थापकों में से एक गूंज इस सप्ताह में अपने हजारों स्वयंसेवकों के साथ, पूरे उत्साह के साथ, देने की संस्कृति (ज्वॉय ऑफ गिविंग) को ध्यान में रखते हुए प्राप्तकर्ता की गरिमा का ख्याल रखता है। इस साल भी, हमारे बीच हाशिये के लोगों के लिए गूंज के अभियान दिल की सुनो, कुछ करो में शामिल होने के लिए विभिन्न शहरों और कस्बों में कई स्वयंसेवक एक साथ आए हैं। गूंज के संस्थापक, अंशु गुप्ता ने कहा, हमें लगता है, सामान्य तौर पर हर किसी की जिम्मेदारी है कि वह दुनिया को वापस दे और देना केवल पैसे के बारे में नहीं है। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे लोग योगदान करते हैं। इस उत्सव में सक्रिय भागीदार होने के 2 से ज्यादा दशकों में, यह उन लोगों का देना है जो हमें बहुत प्रेरित करते हैं। इस साल, जैसा कि दुनिया अभी भी कोविड महामारी के प्रभाव से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही है, गूंज उन लोगों की बदतर दुर्दशा को उजागर करने की कोशिश कर रही है, जो हमारे समाज के हाशिये पर हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। संगठन भारत भर के नागरिकों से इस कठिन घड़ी में अपने साथी नागरिकों के साथ खड़े होने की अपील कर रहा है। चूंकि शहरी बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेते हैं, ग्रामीण बच्चों को हो सकता है कि यह याद नहीं हो किउनकी कक्षाएं कैसी दिखती हैं, या याद नहीं हो कि पढ़ना और लिखना क्या होता है। फिर भी, पारंपरिक पाठ्यपुस्तकें, नोटबुक, पेंसिल उनके सीखने के प्रमुख संसाधन हैं। इसी तरह जो हाशिये पर हैं, उन्हें और बाहर धकेल दिया गया है और वे जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तो, दिल की सुनो, कुछ करो। आइए देने के आसपास के विचार को बदलें। द्वारका (दिल्ली) के गूंज के एक समर्पित स्वयंसेवक अरविंद अग्रवाल हर साल संग्रह शिविर चलाते हैं, और इसकी शुरुआत के बाद से इस उत्सव का हिस्सा रहे हैं। गूंज टीम और स्थानीय स्वयंसेवकों के साथ, अरविंद ने द्वारका में समान विचारधारा वाले लोगों का एक मजबूत नेटवर्क बनाया है जो सालाना भाग लेते हैं। वह त्योहार के सार को अच्छी तरह समझते हैं और उनका कहना है, ज्यादातर लोग स्वयंसेवा के अर्थ को नहीं समझते हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि वे योगदान देना चाहते हैं लेकिन फिर भी वे अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आना चाहते हैं। इसलिए, इस दान उत्सव में हम आपको प्रोत्साहित करते हैं कि आप अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और खुशी फैलाने के लिए 2 और 8 अक्टूबर 2021 से देने के इस त्योहार के दौरान गूंज में शामिल हों। --आईएएनएस आरएचए/एएनएम