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बसपा के लिए मुसीबत बन सकती है आजाद समाज पार्टी

Raftaar Desk - P2

लखनऊ, 6 मई (आईएएनएस)। पंचायत चुनाव के परिणामों में बसपा का गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी के इलाके में पहली बार अस्तित्व में आयी चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी ने जिस प्रकार अपनी आमद दर्ज करायी है, उससे साफ संकेत हैं कि ये पार्टी बसपा के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है। भीम आर्मी की राजनीतिक विंग आजाद समाज पार्टी ने दलितों में अपनी पकड़ बढ़ने का अहसास पंचायत चुनावों के जरिए करवा दिया है। पहली बार पंचायत चुनाव में उतरी आजाद पार्टी का दावा है कि उनके इस चुनाव में 40 से ज्यादा सीटें पर प्रत्याशी विजय हुए हैं। पश्चिमी यूपी मायावती का गढ़ माना जाता है। इस गढ़ की बदौलत वह कई बार सत्ता पर काबिज हुई हैं। लेकिन इस बार के पंचायत चुनाव में आजाद पार्टी ने यहां के कई जिले में कुछ न कुछ सीटें पायी है। इससे बसपा के गढ़ में सेंधमारी के संकेत देखे जा रहे हैं। राजनीति पंडितों की मानें तो आजाद पार्टी ने पंचायत चुनाव में सीटें जीतकर अपना मजबूत स्थान बना लिया है। जिस तरह से युवा इस पार्टी के साथ जुड़ रहा है। ऐसे में आने वाले समय में इनकों ठीक-ठाक कद बढ़ने के आसार बनते दिख रहे है। आजाद समाज पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील चित्तौड़ का कहना है कि हम सर्व समाज की राजनीति कर रहे हैं। हमें किसी एक विषेष दल के विरोध या पक्ष में जोड़कर न देखा जाए। उन्होंने कहा हमें पंचायत चुनाव में 40 से अधिक सीटें मिली हैं। हमारा मकसद संविधान में जो हक जनता को नहीं मिला, उसको सत्ता माध्यम से दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। हम किसी के विरोध के लिए नहीं खड़े हुए है। आजाद समाज पार्टी को ब्लाक और बूथ लेवल संगठन को मजबूत कर रहे हैं। इसी के आधार पर पार्टी 2022 का चुनाव लड़ने जा रही है। वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेशक रतनमणि लाल कहते हैं मायावती का भाजपा प्रति साफ्ट कार्नर के कारण दलितों में उनकी पकड़ ढीली हुई है। राजनीतिक कद भी घटा है। इस कारण चन्द्रशेखर दलितों की आवाज बनकर खाली स्थान को भरने के प्रयास में लगे है। इसी वजह से वह पंचायत चुनाव में बिना किसी तैयारी और संगठन के ही मैदान कूद गए दलितों को एकजुट करके उनकी आवाज बनने का दावा किया। सफल भी हुए। भाजपा के विरोध में जितने भी दल है उनके पास समय नहीं है। 6 माह बचे है। सबको अपनी-अपनी जगह बनानी है। आप, रालोद, आजाद पार्टी सबने इस पंचायत चुनाव में अपनी सफलता क्लेम की है। बसपा में सकेंड लाइन की लीडरशिप खत्म हो गयी है। उनका ढांचा कमजोर हो रहा है। बसपा अपनी कोई अलग पहचान वाली राजनीति नहीं कर पा रही है। --आईएएनएस विकेटी/आरजेएस