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26/11 के पैटर्न कश्मीर में लश्कर के हमलों में पहले देखे गए थे

Raftaar Desk - P2

नई दिल्ली, 27 नवंबर (आईएएनएस)। 26/11 के मुंबई हमलों में देखा गया ऑपरेशन का एक खास पैटर्न, जिसमें हमलावरों ने लक्षित इलाकों में अंदर तक प्रवेश किया और फिर जितना संभव हो सका, खून-खराबा किया। ऐसा भारत पर लश्कर के हमलों में पहले देखा गया था। यह बात कश्मीर में सेना, रैंड कॉर्पोरेशन ने 2009 में मुंबई हमलों के बाद तैयार एक रिपोर्ट में बताई थी। हमलावरों का अलग-अलग टीमों में फैलाव अपने जोखिम को कम करने के अनके प्रयास की ओर इशारा करता है। एक बार हमले शुरू होने के बाद किसी एक टीम की विफलता या उन्मूलन का असर अन्य टीमों पर नहीं पड़ता। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे हमले की विफलता का एकमात्र संभावित बिंदु यह था कि आतंकवादी समुद्र के रास्ते मुंबई में घुसे थे। जबकि यह रणनीति जिहादी समूहों से जुड़े आत्मघाती बम विस्फोटों से अलग थी। आतंकवाद के इतिहास में सशस्त्र हमलों की पर्याप्त मिसाल है। तेल अवीव के पास 1972 के लोद हवाईअड्डे पर हुए हमले, जिसमें जापान के तीन सदस्य थे, लाल सेना ने आग लगा दी और आने वाले यात्रियों पर हथगोले फेंके। 1970 के दशक में बेरिकेड्स और बंधकों की स्थिति ऐसी ही थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यहां जो नया था, वह रणनीति का संयोजन था। जैसा कि जीवित आतंकवादी की गवाही से संकेत मिलता है, हमलावरों का उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को मारना था। रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि, कुछ अनिश्चितता है कि क्या सिर्फ वध ही ऑपरेशन के योजनाकारों का एकमात्र उद्देश्य था? अगर हम 2008 के मुंबई हमलों की तुलना 2006 के मुंबई ट्रेन हमलों से करें, जिसमें सात बमों विस्टोटों में 209 लोग मारे गए थे या 1993 के मुंबई हमलों में, 13 बम धमाकों में 257 लोग मारे गए थे, तब लगता है कि अगर शवों की गिनती ही एकमात्र मानदंड होता तो बम अधिक प्रभावी होते। रिपोर्ट में कहा गया है, लंदन और मैड्रिड बम विस्फोटों की तरह अंधाधुंध बम विस्फोटों की आलोचना की गई है, यहां तक कि कुछ जिहादियों ने भी निंदा की और इसे इस्लामी युद्ध संहिता के विपरीत माना। इसलिए यह संभव है कि निशानेबाजों पर भरोसा करके 2008 के हमलों में अधिक चयनात्मक तरीके अपनाए गए। भले ही मुंबई में मारे गए लोगों में से अधिकांश सामान्य भारतीय थे, जिन्हें बेतरतीब ढंग से मार गिराया गया था। सुरक्षा एक और कारक हो सकता है। पिछले आतंकवादी हमलों के पैटर्न के आधार पर भारतीय अधिकारियों का ध्यान होटलों पर पहुंचने वाले ट्रक बमों पर केंद्रित था। रेल सुरक्षा ट्रेनों में बम रखने की कोशिश पर केंद्रित था, न कि सशस्त्र हमलावरों के स्टेशनों से बाहर हमले पर। रिपोर्ट में कहा गया है, एक सशस्त्र हमला भी हमलावरों के लिए आत्मघाती बम विस्फोटों की तुलना में अधिक आकर्षक हो सकता है। लेकिन ऑपरेशन की लंबी प्रकृति ने उन्हें निरंतर वध में शामिल होने में सक्षम बनाया, जहां वे नतीजा तुरंत देख सकते थे। खुद को शहीद करने को तैयार वे खुद को केवल बटन दबाने वाले आत्मघाती हमलावरों की तुलना में योद्धाओं की तरह सोच सकते थे। रैंड कॉर्पोरेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हमलों के दौरान किसी भी बिंदु पर आतंकवादियों ने सशस्त्र गार्डो पर काबू पाने का प्रयास नहीं किया। अधिकांश आतंकवादियों ने बिना सुरक्षा वाले निशानों पर हमला किया और उन जगहों पर भी, जहां के बारे में उन्हें सूचित किया गया था कि वहां सुरक्षा बल हल्के हथियारों से लैस होंगे। मुख्य लक्ष्यों में केंद्रीय रेलवे स्टेशन, कामा और अल्बलेस अस्पताल, लियोपोल्ड कैफे, चबाड केंद्र, ट्राइडेंट-ओबेरॉय होटल और ताजमहल पैलेस होटल शामिल थे। बाद वाला लक्ष्य केवल चार सदस्यीय टीम को सौंपा गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि चबाड केंद्र में हुए नरसंहार को लेकर अलग तर्क था। हमलों के दौरान आतंकवादियों और उनके आकाओं के बीच फोन कॉल के टेप के अनुसार, चबाड सेंटर में आतंकवादियों को भारत और इजराइल के बीच संबंध खराब करने के लिए यहूदी बंधकों को मारने का निर्देश दिया गया था। हमलावरों ने कथित तौर पर सेलफोन और एक सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल किया। वे ब्लैकबेरी भी ले गए। रिपोर्ट में कहा गया है, यह एक पूरी तरह से पूर्व-नियोजित हमला था। भारतीय अधिकारियों द्वारा जारी एक डोजियर के अनुसार, आतंकवादी पाकिस्तान में मौजूद अपने आकाओं के साथ लगातार संपर्क में थे। भारतीय अधिकारियों द्वारा इंटरसेप्ट किए गए इन फोन कॉल के टेप में सुना गया कि पाकिस्तान में हैंडलर ने हमलावरों को बंधकों को मारने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें याद दिलाया कि इस्लाम की प्रतिष्ठा दांव पर है और उन्हें सामरिक सलाह दे रहे थे। यह आंशिक रूप से टेलीविजन पर एक कार्यक्रम के लाइव कवरेज को देखने से पता चला था। रिपोर्ट में कहा गया है, बंधकों की हत्या के लिए उकसाए जाने के बावजूद कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि जीवित हमलावरों को लगा कि किसी तरह वे जीवित बाहर निकलने जा रहे हैं। घेराबंदी के दौरान आतंकवादियों ने अपने रास्तों पर चर्चा करने के लिए एक-दूसरे को बुलाया। पैंतरेबाजी यह कि उन्होंने अपने बंधकों की रिहाई के बदले में मांग करने के लिए सेलफोन के माध्यम से समाचार मीडिया से भी बात की। इससे भारतीय अधिकारियों को लगा कि उन्हें सिर्फ बंधक स्थिति से निपटना है। इसने उनकी सामरिक प्रतिक्रिया को और भ्रमित कर दिया। --आईएएनएस एसजीके/एएनएम