लोवर माल रोड के स्थायी उपचार को भूवैज्ञानिकों ने निरीक्षण में दिये सुझाव
लोवर माल रोड के स्थायी उपचार को भूवैज्ञानिकों ने निरीक्षण में दिये सुझाव 
उत्तराखंड

लोवर माल रोड के स्थायी उपचार को भूवैज्ञानिकों ने निरीक्षण में दिये सुझाव

Raftaar Desk - P2

कहा-1880 के मलबे पर बनी है माल रोड, नमी की मात्रा भी अधिक जियोलॉजिकल थ्रस्ट भी सक्रिय, माल रोड के ऊपर नालों को डायवर्ट करना होगा नैनीताल, 10 अगस्त (हि.स.)। 18 व 25 अगस्त 2018 को ध्वस्त होने के बाद कामचलाऊ व्यवस्था के तहत बनाई गई लोवर माल रोड के लिए फिर से उम्मीद बन रही है। बताया गया है कि सड़क के 190 मीटर हिस्से का स्थायी उपचार किया जाना है। जिसका प्रस्ताव बनाने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित की जानी है। समिति द्वारा तैयार प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। इसके आधार पर ही सड़क को स्थायी समाधान दिया जाएगा। सोमवार को लोक निर्माण विभाग एवं भूवैज्ञानिकों ने सड़क के पुर्ननिर्माण के लिए स्थलीय निरीक्षण किया, किंतु इस दौरान देखने को मिला कि लोनिवि भूवैज्ञानिकों के सुझावों को अधिक गंभीरता से लेने वाला नहीं है, बल्कि उसकी कोशिश किसी तरह सड़क का पुर्ननिर्माण कर लेने की है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक डा. बहादुर सिंह कोटलिया के अनुसार सड़क निर्माण करने से पूर्व इस स्थान की सीबीआर यानी कैलीफोर्निया बियरिंग रेश्यू के आधार पर लोड बियरिंग कैपेसिटी यानी भार वहन क्षमता और ओएमसी यानी ‘ऑप्टिमम मॉइश्चर कंटेट’ यानी इस स्थान पर नमी की मात्रा की गणना करनी जरूरी होगी। उनका कहना था कि यहां पर सड़क 1880 के भूस्खलन के मलबे पर सड़क बनी है। लोनिवि द्वारा की गई जांच में भी यह बात साफ हुई है कि यहां 56 मीटर की गहराई तक कठोर चट्टान नहीं है। यानी भूस्खलन का कच्चा मलबा है। साथ ही अल्का होटल से सीतापुर नेत्र चिकित्सालय तक ओएमआर 90 फीसद है, जबकि इस स्थान पर सीवर लाइन भी ओवरफ्लो होती है। यहां पर भूसतह व सड़क पर काफी अधिक पानी बहता रहता है। उन्होंने बताया कि इसके उपचार के लिए ग्रांड व अल्का के बीच ऊपर की ओर से आने वाले नाले डायवर्ट कर सतह पर पानी का बहना रोकना होगा। साथ ही डीएसबी के गेट के पास 1990 के दशक में हुए भूस्खलन के बाद से ग्रांट होते हुए सात नंबर तक गुजरने वाला जियोलॉजिकल थ्रस्ट सक्रिय है। उन्होंने कहा कि एलबीसी यानी ‘लोड बियरिंग कैपेसिटी’ 32 फीसद से कम होने पर सड़क नहीं बना सकते हैं। रेत में एलबीसी 10 फीसद होता है। जबकि यहां भूस्खलन का मलबा होने से एलबीसी तीन फीसद होगा। अल्का से सभी नालों काे वैज्ञानिक तरीके से डायवर्ट करना होगा। इसके विपरीत लोनिवि के अधिकारियों का कहना था कि विभाग इन सब भूवैज्ञानिक तथ्यों को संज्ञान में लेने में सक्षम नहीं है। लोनिवि को तो सड़क बनानी है। इस मौके पर लोनिवि के सहायक अभियंता गोविंद सिंह जनौटी, सहायक भू वैज्ञानिक प्रिया जोशी व कनिष्ठ अभियंता महेंद्र पाल आदि भी मौजूद रहे। हिन्दुस्थान समाचार/नवीन जोशी-hindusthansamachar.in