एम्स में कोरोनरी आर्टरी डिजीज का  इलाज उपलब्ध
एम्स में कोरोनरी आर्टरी डिजीज का इलाज उपलब्ध 
उत्तराखंड

एम्स में कोरोनरी आर्टरी डिजीज का इलाज उपलब्ध

Raftaar Desk - P2

ऋषिकेश,23 दिसम्बर (हि.स.)। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में अब कोरोनरी आर्टरी डिजीज का सफलतापूर्वक इलाज उपलब्ध है। हार्ट ब्लॉकेज या कोरोनरी आर्टरी डिजीज के उपचार में कई मरीजों को बाईपास सर्जरी की जरूरत पड़ती है। राज्य के कई मरीजों को ऑपरेशन के लिए दिल्ली आदि महानगरों में जाना पड़ता था। अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। एम्स में यह जोखिमभरी जटिल शल्य क्रिया बिना दिल की गति को रोके की जा रही है। एम्स निदेशक प्रो. रविकांत ने जटिल शल्य क्रियाओं को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने व मरीजों को बेहतर ढंग से समुचित उपचार देने वाली टीम की प्रशंसा की है। उन्होंने सीटीवीएस विभाग के चिकित्सकों के टीम वर्क की सराहना करते हुए कहा है कि एम्स में आयुष्मान भारत योजना में पंजीकृत मरीजों काे पूर्णरूप से निशुल्क ऑपरेशन अथवा उपचार उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि जिन मरीजों के पास आयुष्मान भारत योजना का कार्ड नहीं है और जो गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं उनकी बाईपास सर्जरी आदि निशुल्क करने का प्रावधान है। संस्थान के हृदय शल्य चिकित्सक डॉ. राजा लाहिड़ी ने कहा है कि कुछ समय पूर्व अस्पताल में शुरू हुई इस सुविधा के तहत अब तक हमने उत्तराखंड के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान तथा हरियाणा आदि क्षेत्रों से आए कई मरीजों की सफलतापूर्वक बाईपास सर्जरी को अंजाम दिया है। इनमें कई ऐसे मरीज भी शामिल हैं जिनकी हृदय की कार्यक्षमता काफी कम हो गई है। ऐसे मरीजों की हम आईएबीपी मशीन की सहायता से सफलतापूर्वक सर्जरी करते हैं। संस्थान में 'टोटल आर्टेरियल बाईपास' विधि से भी सर्जरी की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। कोरोनरी आर्टरी रोग के बाबत जानकारी देते हुए काॅर्डियक ऐनेस्थेटिस्ट डॉ. अजय कुमार ने बताया कि "दिल की कोरोनरी धमनियों में रुकावट होने से दिल के दौरे का खतरा बना रहता है। ऐसे में मरीज को चलने फिरने या काम करने पर छाती में दर्द की शिकायत, तेज पसीना आना, घबराहट होना अथवा सांस फूलने जैसे लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में मरीज की समय से जांच एवं इलाज कराने से हृदयाघात के खतरे को टाला जा सकता है तथा इससे मरीज के कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि ऐसी समस्याओं से ग्रसित रोगी की पहले काॅर्डियोलॉजिस्ट जांच व इसके बाद एंजियोग्राफी की जाती है। इसके उपरांत रोगी की चिकित्सा का निर्णय काॅर्डियोलॉजिस्ट, काॅर्डियक ऐनेस्थेटिस्ट एवं काॅर्डियक सर्जन एक साथ मिलकर लेते हैं। इसे विदेशों में आमतौर पर ' हार्ट - टीम एप्रोच ' कहा जाता है। इस विधि से रोगी को उसके रोग के अनुरूप उचित उपचार प्राप्त हो जाता है। हिन्दुस्थान समाचार /विक्रम/मुकुंद-hindusthansamachar.in