the-rich-of-the-pen-the-surety-of-the-tune-sakalani-is-waiting-for-his-place
the-rich-of-the-pen-the-surety-of-the-tune-sakalani-is-waiting-for-his-place 
उत्तराखंड

कलम के धनी, सुर के पक्के सकलानी को मुकाम का इंतजार

Raftaar Desk - P2

-प्रेम के नए रूप को सामने लाए हैं गीत में योगेश प्रसाद सकलानी -उत्तराखंड के नवोदित गायकों की भीड़ में संभावना जगाते हैं देहरादून, 02 अप्रैल (हि.स.)। योगेश प्रसाद सकलानी गढ़वाली लोक संगीत और साहित्य का चमकदार नाम नहीं है। वह नवोदित लोक कलाकार हैं। उनकी आंखों में एक अलग सी चमक को देखा जा सकता है। यह चमक लोक संगीत और साहित्य के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम हासिल करने की महत्वकांक्षा और इसके लिए जीतोड़ संघर्ष से उपजी है। रुद्रप्रयाग जिले के मयाली गांव निवासी योगेश प्रसाद सकलानी को उन नवोदित लोक कलाकारों में शामिल किया जा सकता है, जो संभावनाएं जगाते हैं। एक रोमांटिक गीत 'एक प्रेम इन भी' के जरिये एक बार फिर वह लोगों के सामने हैं। सकलानी छोटी उम्र से लिखते और गाते चले आ रहे हैं। उन्होंने 2007 से प्रोफेशनल तरीके से सब कुछ करना शुरू किया। पहली सीडी एलबम 'गैल्या' शीर्षक से आई। इसी समय 'बांद सरणा' लेकर भी वह लोगों के सामने आए। 'दिखेंदी भी नहीं' शीर्षक से सकलानी ने युवा मन को गुदगुदाने की कोशिश की। उन्होंने प्रयास ईमानदारी से किए हैं लेकिन कह सकते हैं जिस सफलता की उन्हें तलाश है, वह अभी हासिल नहीं हुई है। सकलानी इससे मायूस नहीं हैं। वह कहते हैं-स्तरीय गीत लोगों को देना मकसद है और इसी के लिए प्रयास करता रहूंगा। सकलानी गढ़गौरव प्रोडक्शन के तहत अब लगातार काम कर रहे हैं। गढ़गौरव प्रोडक्शन के संस्थापक अनिल भट्ट के साथ मिलकर पहले उन्होंने एक धार्मिक गीत रिलीज किया, जो कि मां कुरमा सैंण को समर्पित है और शीर्षक 'चला चरणों में' है। इसके बाद अब एक रोमांटिक गीत 'एक प्रेम इन भी' लोगों के सामने आ गया है। गीतों के एक-एक शब्द को लेकर सकलानी के संवेदनशील होने की एक बानगी देखिए। वह लिखते हैं-मेरू ज्यू बोल्दू मी गीत लिक्खूं/कि रूंदा मन हसोण्याा/क्वासा मन बुथ्योणा/अपनी भूली बिसरी रीत लिक्खूं (मेरा मन कहता है कि मै गीत लिक्खूं, कि रोते हुए मन को हंसाने के लिए, उदास मन को बहलाने के लिए, अपनी भूली-बिसरी रीत लिक्खूं)। पूरी दुनिया को हिलाकर रख देने वाले कोरोना काल के बाद उत्तराखंड के भीतर बदली तस्वीर पर भी सकलानी ने कलम चलाई है। रिवर्स पलायन का समर्थन करते हुए उन्होंने लिखा है-अब ऐगी जो छोड़ी न जांया/छि भे तैं देश मा बोडी नी जायां (अब आ गए हो, तो छोड़ के मत जाना, पहाड़ छोड़कर दूसरे इलाकों में वापस मत हो जाना)। सकलानी, जीत सिंह नेगी, नरेंद्र सिंह नेगी जैसे बडे़ लोक कलाकारों से प्रभावित तो हैं ही, लोक साहित्य के पुरोधा गोविंद चातक ने भी उन्हें बहुत गहरे से प्रभावित किया है। यही वजह है कि गाने के साथ ही साथ वह पहाड़ी जनजीवन में जो कुछ देखते-सुनते हैं, उसे लिख देते हैं। सकलानी के साथ एक खासियत और जुड़ी है, वह है गीतों को संगीतबद्ध करने की कला। अपने सभी गीतों की धुन और उसका संगीत सब कुछ सकलानी खुद तैयार करते हैं। वह नवोदित कलाकारों के साथ एक जमाने में कैसेट कंपनियों के शोषण का जिक्र करना नहीं भूलते। वह कहते हैं-कैसेट कंपनियों ने नए कलाकारों का जमकर शोषण किया। वह बताते हैं-जब कैसेट-सीडी का दौर था, तब दिल्ली में कैसेट कंपनियों के यहां कलाकारों का हुजूम उमड़ा रहता था। रात में कभी-कभी एक बजे रिकार्डिंग का नंबर आता था। वह भी बहुत जल्दबाजी में की जाती थी, जिससे कलाकारों की असल प्रतिभा निखरकर सामने नहीं आ पाती थी। वह कहते हैं-आज स्थितियां बदली हैं। सोशल मीडिया, यूट्यूब के प्लेटफार्म ने काफी चीजें आसान कर दी हैं, लेकिन हिट होने के लिए पहली शर्त आज भी बेहतरीन प्रदर्शन ही है। हिन्दुस्थान समाचार/विपिन बनियाल/मुकुंद