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उत्तराखंड

दीपू और दीपक गंगा के सफाईदूत, डूबते को बचा कर बनते हैं देवदूत

Raftaar Desk - P2

हरिद्वार, 05 अप्रैल (हि.स.)। हरकी पैड़ी स्थित अस्थी घाट पर कुछ नौजवान गंगा नदी में कूड़ा- कबाड़ के अलावा विसर्चित किए गए बर्तन, धातु सामग्री आदि को इकट्ठा कर रहे हैं। यह लोग कहते हैं कि यही उनकी रोजी-रोटी है। यह लोग इस बात से खुश हैं कि मेला प्रशासन ने उन्हें परिचय पत्र दिया है। इन लोगों में हरिद्वार के दीपू कुमार और दीपक कुमार भी शामिल हैं। दीपू और दीपक सगे भाई हैं। दोनों ने महाकुंभ के दौरान अस्थि घाट पर साफ-सफाई का काम संभाल रखा है। यहां जो लोग पानी में बह जाते हैं या कहीं से नदी में शव बहकर आ रहा हो तो उनको पकड़ने का काम भी करते हैं। दोनों तैराक हैं। गंगा नदी में विसर्जित की गई तरह-तरह की वस्तुओं को इकट्ठा भी करते हैं। यही नहीं गंगा नदी के प्रवाह में अचानक कोई श्रद्धालु अनजाने से बह रहा हो तो उसे भी दीपू और दीपक बचाने का प्रयास करते हैं। गंगा में विसर्जित सामग्री को एकत्र करने से इनकी रोजी-रोटी चलती है। दीपक का कहना है कि गंगा में कुछ लोग तांबे के बर्तन भी विसर्जित करते हैं। यह आमतौर पर बह जाते हैं। इनमें मात्र एक प्रतिशत तांबे, कांसे व पीतल के बर्तन जैसे लोटा आदि ही बच जाते हैं। उन्हें वे पानी के प्रवाह के साथ पकड़ते हैं। दोनों वाल्मीकि समुदाय से हैं। यह उनका पुश्तैनी काम है। इनके समुदाय के अन्य युवा भी हरिद्वार के अलग-अलग घाटों पर यही काम करते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/रजनीकांत/मुकुंद