पखावज नृत्य से प्रसन्न हो देवी ने छोड़ा कुशीनगर एयरपोर्ट परिसर
पखावज नृत्य से प्रसन्न हो देवी ने छोड़ा कुशीनगर एयरपोर्ट परिसर  
उत्तर-प्रदेश

पखावज नृत्य से प्रसन्न हो देवी ने छोड़ा कुशीनगर एयरपोर्ट परिसर

Raftaar Desk - P2

- चार देव-देवी स्थल समारोह पूर्वक अन्यत्र स्थापित किये गए। कुशीनगर, 02 सितम्बर(हि.स.)। कुशीनगर एयरपोर्ट परिसर क्षेत्र में स्थित प्राचीन देवी पखावज नृत्य से प्रसन्न हो अन्यत्र स्थापित हुईं। स्थल बदले जाने के पूर्व उनके समक्ष कलाकारों के दल ने पखावज (इंद्रासनी) नृत्य कर प्रस्तुत शमा बांध दिया। पुनः आचार्य दल ने विधि विधान से देवी से अनुनय विनय कर नए स्थान पर पधारने का आग्रह किया गया। आठ आचार्यो ने मंत्रोच्चार कर पूजन कार्य सम्पन्न कर देवी को प्रतिष्ठापित किया। बड़ी संख्या में लोगों ने नृत्य का आनन्द उठाया और देवी की स्तुति की। निर्माणाधीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से शीघ्र उड़ान शुरू कराने के लिए परिसर से देवी स्थल को हटाने की बात सामने आई तो ग्रामीणों ने पहले परिसर से बाहर स्थान तय किया। फिर अथार्टी और प्रशासन को विधि विधान से नए स्थल पर देवी को स्थापित करने के लिए मृदंग की थाप पर इंद्रासनी नृत्य कराने की शर्त रखी। मान्यता है कि स्थान बदलने के पूर्व देवी के समक्ष पखावज नृत्य प्रस्तुत करना ही होता है। सुदूर स्थान से पखावज कलाकारों की टीम बुलाकर पहले देवी को प्रसन्न कराया गया, फिर उनका और तीन अन्य देवों का आसन बदला गया। दलित समाज का प्रिय नृत्य है इंद्रासनी इंद्रासनी नृत्य दलित समाज का प्रिय नृत्य है। नवरात्र में देवी मंदिरों में यही नृत्य होता है। मान्यता है कि इस नृत्य से देवी प्रसन्न होती हैं। देवी के प्रति आस्था और इस नृत्य की एक मुद्रा सामाजिक समरसता का भी संदेश देती है। इस नृत्य में सवर्ण जातियों की महिलाएं आंचल फैलाती हैं और दलित समाज का नर्तक उस पर नृत्य करता हैं। कला को राजसत्ता से मिलता था संरक्षण आजाद भारत में लोकसत्ता यह भूमिका निभाती है। लेकिन गोरखपुर की एक लोककला को दो प्रसिद्ध देवी मंदिरों से संरक्षण मिलता है। इन मंदिरों की बदौलत ही ‘इंद्रासनी नाच’ आज भी अपने वजूद में है। इनमें पहला मंदिर है तरकुलहा देवी तो दूसरा है बुढ़िया माई मंदिर। माना जाता है कि दोनों मंदिरों पर जिसकी भी मनोकामना पूरी हो जाती है, वह खुश हो कर वहां इंद्रासनी नाच कराता है। इससे देवी प्रसन्न होती हैं। इंद्रासनी नाच में मृदंग की थाप पर विभिन्न मुद्राओं के जरिए देवी मां को रिझाने का प्रयास किया जाता है। विश्वास है कि इससे वह प्रसन्न हो कृपा बरसाती हैं। तरकुलहा देवी मंदिर पर महिलाएं आंचल पर भी नाच कराती हैं। हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/राजेश-hindusthansamachar.in