जौनपुर,13 फरवरी (हि.स.)। अयोध्या धाम से पधारे संत निर्मल शरण जी महराज ने कहा कि बाह्य सुन्दरता नहीं, बल्कि व्यक्ति के अंत:करण की सुंदरता का भाव ही भगवान का प्रमुख आहार है।यही भाव व्यक्ति के भीतरी सतह में जागृत हो जाना ही भगवान की प्राप्ति में सहज मार्ग है। निर्मल शरण महाराज ने मुंगराबादशाहपुर नगर मेंं स्थित मां काली जी मंदिर के पीछे चल रहे श्रीमद भागवत कथा मेंं शुक्रवार को चौथे दिन ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि भगवान राम भामिनि के अंदर की सुंदरता के भाव पर रीझ गए।उसके द्धारा परोसे गए जूठे बेर का बड़े ही चाव से भोग लगाए। वही भगवान कृष्ण दुर्योधन के छप्पन प्रकार के व्यंजन वाले निमंत्रण का परित्याग कर विदुर के घर जाकर केले के छिलके का भोग लगाएं। स्वामी जी ने कहा कि भगवान के प्रति समर्पण भाव रखने वाला व्यक्ति ही प्रभू का असली भक्त होता है। भगवान जब एक बार किसी का दामन थाम लेते है तो वह उसे छोड़ते नहीं है। उन्होंने कहा कि भगवान का प्राकटय उद्धार व जनकल्याण के लिए होता है। भगवान कृस्ण माखन चोर नहीं बल्कि चित्त चोर थे।जिसका प्रतिफल रहा कि ग्वाल सखा व गोपियाँ सभी भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए अपना सुध बुध खो बैठे थे। संत ने कंस द्वारा भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजे गए पूतना, तृर्णावर्त, शकटासुर की कथा का विस्तार से वर्णन किया। चेयरमैन शिवगोविंद साहू कथा में पहुंच कर संत का आर्शीवाद लिया। संचालन विश्वा मित्र ने किया। मुख्य यजमान कृष्ण चन्द्र गुप्त व पत्नी राम दुलारी देवी गुप्ता परिवार के साथ कथा श्रवण कर रही है। हिन्दुस्थान समाचार/विश्व प्रकाश-hindusthansamachar.in