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उत्तर-प्रदेश

सिद्धार्थनगर : गालापुर वाली वटवासिनि महाकाली करती है सभी भक्तों की मनोकामना पूरी

Raftaar Desk - P2

सिद्धार्थनगर, 14 अप्रैल (हि.स.)। चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है। मन्दिरों में कोविड-19 का पालन कराते हुए श्रद्धालुओं को दर्शन कराया जा रहा है। अगर बात की जाये तो जनपद के डुमरियागंज तहसील क्षेत्र के ग्राम गालापुर की वटवासिनी महाकाली का ऐसा सच्चा दरबार है,जहां माता अपने भक्तों की मनोकामना को अवश्य पूर्ण करती हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां पर काफी भीड़ देखी जाती है। मन्दिर के व्यस्थापक ठाकुर प्रसाद मिश्र बताते है कि आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व कलहंस वंश के राजा केशरी सिंह का यहां पर राज्य था। पहले जनपद गोंडा में खोरहश जंगल के पास भी उनका राज्य था। वे पूरब की ओर अपनी सेना के साथ बढ़ते हुए स्वतंत्र राज्य लटेरा तक पहुंच गए। यहां पर वे अपना महल बनवाकर रहने लगे। राजा महाकाली के परम भक्त थे। उन्होंने शाक्य दीप के अपने पुरोहितों से महाकाली को जनपद गोंडा के खोरहश जंगल से लाकर लटेरा में स्थित राजमहल के सामने स्थापित करने को कहा। पुरोहित गण खरहोस जंगल मे जाकर छह माह तक तपस्या किये। इसके बाद मां ने दर्शन देकर आशीर्वाद दिया। पुरोहितों ने मां से तुरंत साथ चलने का प्रार्थना किया। इस पर महाकाली ने कहा कि तुम लोग यहां से एक मदार का पेड़ उखाड़ कर सिर पर रखकर ले चलो। पुरोहित मदार का पेड़ लेकर चले और महल के पीछे रुककर राजा को संदेश भेजा की हम लोग मां को लेकर आ गए हैं। लेकिन कुछ लोगों ने राजा को भ्रमित करने के लिए यह कहा दिया कि ये पुरोहिर सिर पर मदार का पेड़ रखकर कह रहे हैं कि महाकाली हैं, जो मुर्ख बना रहे है। इस पर राजा क्रोधित होकर दूत से संदेश भिजवाए की जहां रुके हैं वहीं उस पेड़ को रख दें। इस बात से नाराज होकर पुरोहितों ने पूजन करके सिर से मदार का पेड़ उतार कर जमीन पर रख दिया। पेड़ का स्पर्श भूमि से होते ही तेज गड़गड़ाहट की आवाज के साथ धरती फट गई, जिसमें मदार का पेड़ समाहित होने के साथ ही उसमे जो बरगद का बृक्ष बाहर निकला वो जो आज भी मौजूद है। जमीन फटने की आवाज सुनकर राजा केशरी सिंह चक्कर खाकर अपने सिहांसन से नीचे गिर गए। वे महल से दौड़कर आये और हाथ जोड़कर मां से कहा कि उन्होंने जो अपराध किया है इसके लिए उन्हें क्षमा कर दिया जाये। लेकिन मां ने कहा कि तुमने हमारा और इन पुरोहितों का अपमान किया है। इसलिए तुम्हारा विनाश हो जाएगा। इसके बाद उनका सारा राजपाठ छीन गया। अब इस स्थान की देख रेख उन्ही के वंश के राजा शोहरतगढ़ के उत्तराधिकारी योगेंद्र प्रताप सिंह कर रहे हैं। इस स्थान पर मंदिर नहीं है। महाकाली उसी बरगद के बृक्ष के नीचे खुले आसमान में विराजमान हैं। हिन्दुस्थान समाचार/बलराम/दीपक