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उत्तर-प्रदेश

बजट में बौद्ध सर्किट की उपेक्षा दुःखद, भिक्षु व पर्यटन कारोबारी निराश

Raftaar Desk - P2

कुशीनगर, 22 फरवरी (हि. स.)। प्रदेश के नवीन सत्र के लिए सोमवार को विधानसभा में पेश पूरक बजट में बौद्ध सर्किट के विकास के लिए प्राविधान न होने को कुशीनगर के बौद्ध भिक्षुओं व पर्यटन कारोबारियों ने दुःखद बताया है। कहा कि पर्यटन के माध्यम से करोड़ों का राजस्व देने वाले बौद्ध सर्किट की सरकार ने उपेक्षा की है। लोगों को उम्मीद थी कि कुशीनगर एयरपोर्ट से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय उड़ान को देखते हुए सरकार किसी बड़ी योजना की लांचिंग कर सकती है। निरस्त मैत्रेय परियोजना की 190 एकड़ जमीन को पर लोग री लांचिंग की उम्मीद लगाए बैठे थे। इस सम्वन्ध में दिए गए सभी प्रस्ताव दरकिनार कर दिए गए। प्रतिक्रिया में भंते अशोक ने कहा कि बजट में अयोध्या, बाराणसी, चित्रकूट ,विंध्याचल व नैमिषारण्य में 220 करोड़ की व्यवस्था की गई है। किंतु बुद्ध से जुड़े महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर, सारनाथ व कपिपवस्तु व श्रावस्ती की उपेक्षा कर दी गई। जबकि सरकार को बौद्ध सर्किट भारी राजस्व देता है। पर्यटन कारोबारी आरएम गुप्ता ने कहा कि बौद्ध सर्किट के विकास को लेकर बजट में सरकार की गम्भीरता नही दिखीं। सात साल से चल रहा बाराणसी-गोरखपुर मार्ग का निर्माण पूरा नहीं हुआ। यदि यह मार्ग बन जाता तो सड़क मार्ग से यहां आने वाले सैलानियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होती। पर्यटन कारोबारी पंकज कुमार सिंह ने कहा कि बजट से उम्मीद थी कि सरकार कुछ ठोस करेगी। पांच महीने के सीजन वाले बौद्ध सर्किट के सीजन को बर्ष पर्यंत बनाना एक बड़ी चुनौती है। सरकार थोड़ा थोड़ा भी कर इस चुनौती से निबट सकती थी। किन्तु सरकार की प्रतिबद्धता नही दिखी, जो दुखद है। कारोबारी भृगुनाथ श्रीवास्तव ने कहा कि पूर्वांचल के विकास में बौद्ध सर्किट महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यहां सबसे जरूरी पर्यटकों के ठहराव के घण्टों में बढोत्तरी करना है। पर्यटन आते जरूर हैं, पर रुकते नहीं। पर्यटन आधारित परियोजना लगाकर रोजगार सृजन भी किया जा सकता है। भंते महेंद्र ने कहा कि सरकार अक्सर बौद्ध सर्किट में पर्यटन आधारित बड़ी योजना की स्थापना की बात तो करती है। किंतु बजट में कुछ नही दिखा। यह स्थिति ठीक नहीं है। सरकार को एक समान निर्णय लेना चाहिए। होटल कारोबारी अनुपम पाठक का कहना है कि कोविड काल में वैसे ही पर्यटन उद्योग की कमर टूट गई है। घाटे से उबारने का कोई प्राविधान नहीं किया गया है। बजट में यह उपेक्षा निराशाजनक है। हिन्दुस्थान समाचार/गोपाल/दीपक