-चित्तौड़ प्रांत की इतिहास संकलन समिति की ओर से आयोजित वेबीनार में विशेषज्ञों ने रखे विचार उदयपुर, 03 जनवरी (हि.स.)। मेवाड़ की कहानी में जल संचयन का विचार मानव के सुसंस्कृत होने के साथ ही नजर आता है। आहड़ सभ्यता में जल संचयन की परम्परा तो नजर नहीं आती लेकिन कुओं की उपलब्धता यहां के लोगों में पानी के संरक्षण के प्रति झुकाव को दर्शाती है। इसके बाद ऐतिहासिक काल में नागदा और उससे जुड़े क्षेत्र में घासा गांव का तालाब अपनी ऐतिहासिकता पर गर्व कर सकते हैं। घासा और देलवाड़ा गांव के बीच स्थित गंधर्व सागर तालाब आज गदेला तालाब के नाम से जाना जाता है। इसका पूरा अपवाह क्षेत्र नागदा के तालाबों से बनता है। इसमें वर्तमान में देलवाड़ा तालाब, बघेला तालाब और इन्द्र सागर प्रमुख रूप से योगदान करते हैं और आगे बढ़ कर इसका पानी मावली के निकट बेड़च नदी में समाहित होता है। इस प्रकार मेवाड़ में जलस्रोतों के व्यवस्थित संकलन को हमेशा से महत्व दिया जाता रहा है। जब चित्तौड़ राजधानी बना तो किले पर सभी जलस्रोतों को इस प्रकार बनाया गया कि वहां पानी की कमी भी ना हो और व्यर्थ में बहे भी नहीं। यही परम्परा आज से 450 वर्ष पूर्व बसना शुरू हुए उदयपुर शहर में भी मेवाड़ के महाराणाओं ने निरंतर रखी। अपनी राजधानी को जल से सुरक्षित और संरक्षित रखने की मेवाड़ के शासन की स्वाभाविक प्रवृत्ति ने यहां पर जल संरक्षण और नदियों के आंतरिक योजन को वैज्ञानिक और शिल्प कौशल का साधन बना दिया। यह सभी बातें रविवार को इतिहास संकलन समिति चित्तौड़ प्रांत, उदयपुर और प्रताप गौरव केन्द्र उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक वेबिनार में वक्ताओं ने रखी। वेबिनार के मुख्य वक्ता देवेन्द्र सिंह ने मेवाड़ के तालाबों की निर्माण शिल्प, भौतिक उपस्थिति, भौगोलिक वस्तुपरकता और जल संरक्षण में उनके योगदान पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि शहर के सभी तालाब स्वरूप तालाब (कोड़ियात का तालाब), जनासागर (बड़ी का तालाब), फतहसागर वाटर चैनल के माध्यम से जुड़े हैं। वैसे ही पिछोला, गोवर्धनसागर और अलसीगढ़ का तालाब भी एक वाटर चैनल से जुड़े हैं और अन्त में पिछोला और फतहसागर को भी लिंक नहर से जोड़ा गया है। इस विकास की पूरी प्रक्रिया में करीब 800 वर्ष लगे और शासन के साथ ही आम जन इस विकास के भागीदार रहे। विशेष बात यह है कि पिछोला तालाब का निर्माण उदयपुर शहर के मूल गांव पिछोली के निवासियों ने अपने गोप (ग्राम प्रमुख) लखी बणजारे के नेतृत्व में किया था। कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व आचार्य एसपी व्यास ने की। मुख्य अतिथि अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली के महासचिव ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने की। कार्यक्रम में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजन उपाध्यक्ष केएस गुप्त, प्रताप गौरव केन्द्र सचिव और पूर्व कुलपति परमेन्द्र दशोरा, चित्तौड़ प्रांत के अध्यक्ष मोहनलाल साहू, प्रांत के मंत्री शिवकुमार मिश्रा, क्षेत्रीय संगठन मंत्री, छगनलाल बोहरा, जिला मंत्री चैनशंकर दशोरा, प्रांत के प्रचार प्रमुख डाॅ. विवेक भटनागर, डाॅ. मनीष श्रीमाली आदि ने विाचर व्यक्त किए। हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/संदीप-hindusthansamachar.in