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राजस्थान

स्वच्छ सर्वेक्षण की परीक्षा में पास होने की चुनौती के बीच कार्मिकों की फौज में कमी का रोड़ा

Raftaar Desk - P2

जयपुर, 11 मार्च (हि. स.)। स्वायत शासन विभाग के अधीनस्थ प्रदेश में संचालित नगरीय निकायों के सामने स्वच्छ सर्वेक्षण की परीक्षा में पास होने की चुनौती के बीच कार्मिकों की फौज में कमी बड़ा रोड़ा बन गई है। वित्तीय वर्ष का आखिरी महीना होने के चलते राजस्व बढ़ाना भी बड़ी चुनौती है, लेकिन कर्मचारियों की अधूरी फौज से ये सभी काम फिलहाल अधर में लटके हुए हैं। राजधानी जयपुर के हेरिटेज और ग्रेटर नगर निगम सहित प्रदेश के सभी नगरीय निकाय अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं। ये कमी इन निकायों में होने वाले कामों की प्रमुख बाधा भी साबित हो रही है। नगरीय निकाय शहरी आबादी के लिए महत्वपूर्ण सेवाओं का विस्तार करते है। सफाई, सडक़, सीवरेज, फायर और जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे कई काम इन निकायों के हिस्से में आते हैं, जिसके लिए कर्मचारियों की एक बड़ी फौज यहां तैनात रहती है। लेकिन, राजधानी में दो नगर निगम बनने के बाद मानो निगम में कर्मचारियों का टोटा पड़ गया है। सबसे ज्यादा कमी तो सफाई कर्मचारियों और लाइनमैन की है। ग्रेटर नगर निगम की कार्मिक उपायुक्त ममता नागर की मानें तो यहां 8599 पद स्वीकृत है। इनमें से महज 4200 पदों पर अधिकारी-कर्मचारी कार्यरत हैं। ये कमी उपायुक्त के पद से ही शुरू हो जाती है। यहां उपायुक्त के 12 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 3 पद रिक्त हैं। इसके चलते कुछ उपायुक्तों को अतिरिक्त चार्ज दिया हुआ है। यहां सफाई कर्मचारियों के करीब 7145 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से महज 3355 कार्यरत हैं। ऐसे ही हालात लाइनमैन के हैं। हेरिटेज नगर निगम में भी स्वीकृत पदों की तुलना में कर्मचारियों की संख्या कम ही है। कार्मिक उपायुक्त अनीता मित्तल के अनुसार यहां 5853 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 1126 पद रिक्त हैं। इनमें प्रमुख रूप से आरआई, एआरआई, कनिष्ठ लिपिक के पद खाली पड़े हैं जबकि सफाई कर्मचारियों के भी एक हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं। आयुक्त लोक बंधु का कहना है कि कर्मचारियों की कमी से कार्य की दक्षता में कमी आती है। हालांकि कार्यरत कर्मचारियों को अतिरिक्त कार्यभार सौंप कर ये सुनिश्चित किया जा रहा है कि जनता के कार्य प्रभावित ना हो। रिक्त पदों की ये कहानी सिर्फ जयपुर के दोनों निगमों की नहीं, बल्कि प्रदेश के सभी नगरीय निकायों की है। आलम ये है कि निकायों में कमिश्नर तक के 10 पद रिक्त पड़े हैं जबकि अधिशाषी अधिकारी तो मानो सरकार लगाना ही भूल गई है। डीएलबी डायरेक्टर दीपक नंदी का कहना है कि प्रदेश में फिलहाल 659 स्वीकृत पदों की तुलना में महज 238 अधिकारी और सहायक अधिकारी ही कार्यरत हैं, जबकि 348 पद रिक्त हैं। ये स्वाभाविक है कि रिक्त पदों से कार्य प्रभावित होते हैं और उपलब्धता नहीं होने की वजह से फिलहाल दिक्कतें आ रही हैं। कुछ पदों पर भर्तियां लंबित हैं तो कुछ पदों पर दूसरे विभागों से डेपुटेशन पर कर्मचारियों को लगाया जाना है, लेकिन निकायों के सामने स्वच्छ सर्वेक्षण और वित्तीय वर्ष का आखिरी महीना होने के चलते राजस्व बढ़ाना बड़ी चुनौती है। हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/संदीप