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मध्य-प्रदेश

गृह विभाग ने राजस्व रिकॉर्ड गायब मामले में डीजीपी को दिये कार्रवाई के निर्देश

Raftaar Desk - P2

नागदा/उज्जैन, 05 अप्रैल (हि.स.)। जिले की नागदा तहसील के वर्ष 1958 से 1963-64 तक के चोरी-गायब हुए रिकॉर्ड की एफआईआर दर्ज करने का मामला अब डीजीपी तक पहुंचा है। मप्र शासन के गृह विभाग ने प्रकरण को गंभीरता से लिया। विभाग के अवर सचिव अन्नू भलावी ने उचित कार्यवाही के लिए पुलिस महानिदेशक को निर्देशित किया है। हाल में इस मामले में निर्देश पत्र जारी हुआ। निर्देश पत्र की प्रति हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता नागदा के पास सुरक्षित है। गृह विभाग ने यह कार्यवाही रेलवे सलाहकार समिति के पूर्व सदस्य अभिषेक चौरसिया निवासी नागदा की शिकायत पर की है। इस रिकॉर्ड के तार सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन लगभग 200 करोड़ की विवादित भूमि से जुड़े है। इस संपति के स्वामित्व को लेकर मप्र शासन एवं ग्रेसिम कंपनी नागदा के बीच विवाद चल रहा है। शिकायत में यह मसला उठाया गया हैकि तहसील नागदा के राजस्व ग्राम पाड़ल्या कला मेहतवास एवं नागदा कस्बा का वर्ष 1958 से 1963-64 तक के रिकॉर्ड के अभिलेख गायब है। मामले में एफआईआर दर्ज की जाए। कलेक्टर ने एफआरआई का दिया था निर्देश हिस के पास सुरक्षित दस्तावेजों के अनुसार उज्जैन के तत्कालीन कलेक्टर शशांक मिश्र ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था। उन्होंने यह कार्यवाही कांग्रेस शासन के तत्कालीन राजस्व मंत्री गोविंदसिंह राजपूत के निर्देश पर की थी। यह निर्देश राजपूत ने 3 नवम्बर 2019 को दिया था। यह कार्यवाही भी अभिषेक की शिकायत पर हुई थी। तब से मामला थाना खाचरौद में अटका पड़ा है। बताया जा रहा हैकि किसी समय नागदा की तहसील खाचरौद थी इसलिए रिकॉर्ड खाचरौद कार्यालय से गायब हुआ है। थाना खाचरौद में दस्तावेज चोरी होने अथवा गुम होने के शब्द भ्रमजाल के कारण प्रकरण अटका है।तत्कालीन कलेक्टर के निर्देश को आधार बना अभिषेक ने फिर गृह विभाग भोपाल में शिकायत की थी। जिस पर अब यह कार्यवाही हुई है। एफआईआर से ये फायदा अभिषेक की दलील हैकि सुप्रीम कोर्ट में जिस भूमि को लेकर मप्र शासन एवं ग्रेसिम के बीच प्रकरण चल रहा है रिकॉर्ड चोरी होने की एफआईआर होने से प्रशासन का पक्ष मजबूत होगा। करोड़ों की भूमि शासन-प्रशासन को मिलने का मार्ग प्रशस्त होगा। अभिषेेक के अनुसार किसी समय तत्कालीन एसडीएम ने उच्च न्यायायल इंदौर और राजस्व मंडल को दिए प्रतिवेदन में इस बात का उल्लेख किया हैकि वर्ष 1958 से 1963-64 का राजस्व रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार अतिरिक्त कलेक्टर न्यायलय उज्जैन ने भी एक निर्णय में उक्त समय अवधि का रिकार्ड गायब होने की पुष्टि की है। प्रींसिपल सेक्रटरी है पिटीशनर करोड़ों की संपति को लेकर शासन व ग्रेसिम के बीच सुपीम कोर्ट में एसएलपी सी नंबर 015837/ 2018 के माध्यम से प्रकरण विचाराधीन है। इस प्रकरण में मप्र शासन की ओर से प्रिसिपल सेक्रेटरी, कलेक्टर उज्जैन, एसडीएम नागदा एवं तहसीलदार नागदा पिटीशनर है। जबकि बतौर पार्टी ग्रेसिम प्रबंधन एवं हाईकोर्ट द्धारा नियुक्त लिक्विीडेटर है। क्यों है भूमि को लेकर विवाद उज्जैन के तत्कालीन अपर कलेक्टर न्यायालय के एक निर्णय के मुताबिक शासन ने बिड़ला ब्रदर्स लिमिटेड गवालियर को वास्ते कायमी टैक्सटाइल मिल्स स्थापना के लिए नागदा में 17 जुलाई 1943 को तथा फिर बिड़ला ब्रदर्स कलकता को पद्मावती राजे काटन मिल्स के लिए जमीन 24 जून 1945 को दी थी। भारत कामर्स उद्योग 3 जून 2000 को बंद होगया । उद्योग चलाने के लिए भूमि दी गई थी। इसलिए उद्योग बंद होने पर वापस भूमि सरकार की है। इस निर्णय में यह भी लिखा हैकि नागदा एवं मेहतवास की भूमि ग्वालियर रियासत में 1943-1945 में पदमावती काटन मिल्स की स्थापना और उद्योग स्थापना के लिए भारत कामर्स मेसर्स बिरला ब्रदर्स को प्रदान की गई थी। कालांतर में उक्त भूमियां वर्ष 1964- 65 में प्रश्नाधीन भूमि कब और कैसे भारत कामर्स लिमिटेड और गवालियर रेयान लिमिटेड के नाम दर्ज हुई। इसका कोई आदेश रिकॉर्ड इत्यादि नहीं है। क्योंकि वर्ष 1958- 59 से 1963 का कोई राजस्व रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। बंद भारत कामर्स उद्योग की देनदारियां चुकाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश 23 अक्टूबर 2013 के आधार इस उद्योग की भूमि को नीलाम किया गया। नीलामी में इस भूमि को क्रय कर ग्रेसिम कंपनी ने अपने हित में 5 फरवरी 2014 को विक्रय पत्र संपादित कराया। यह रजिस्ट्री ग्रेसिम के तत्कालीन गुप एक्जीटिव प्रेसीडेंट डा. प्रकाश माहेश्वरी के पक्ष में की गई। कुल भूमि 195. 432 हैक्टेयर को ग्रेसिम ने 39 करोड़ 09 लाख में क्रय की। बाद में कलेक्टर न्यायालय ने आदेश 17 नवंबर 2014 को मजदूर नेता भवानीसिंह शेखावत की शिकायत पर इस भूमि को सरकारी घोषित किया। तत्कालीन तहसीलदार नागदा ममता पटेल ने 18 नवंबर 2014 को इस भूमि पर कब्जा प्राप्त किया। हिन्दुस्थान समाचार/कैलाश सनोलिया