bhartrihari-is-very-relevant-in-terms-of-harmony-acharya-mishra
bhartrihari-is-very-relevant-in-terms-of-harmony-acharya-mishra 
मध्य-प्रदेश

समरसता के संदर्भ में भर्तृहरि सर्वथा प्रासंगिक हैं : आचार्य मिश्र

Raftaar Desk - P2

उज्जैन , 23 जनवरी (हि.स.)। भारत की चार क्रान्तियाँ वैदिक, बुद्ध, महावीर और पुनरुत्थान से मानी जा सकती हैं। ये कदाचित् भारत में ही संभव हुई हैं। प्रकृति, संस्कृति और विकृति से तीन धाराएं हैं। इन्हें परिभाषित करते हुए नये युग में सेतुधारा का कार्य समरसता करती है। पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्मवाद इनके मूल में है। ललित कलाओं का रसास्वादन करते समय में नीति शृंगार और वैराग्य की वीथिका से ही निकलना पड़ता है। शब्द को तरलता के साथ साहित्य का प्रसार जनसमाज में होना चाहिये। समाज को दिशा देने के लिये भर्तृहरि के विचारों को सम्प्रेषित करने की आवश्यकता है। भर्तृहरि की शतक गायन परम्परा के संरक्षण के लिये प्रयत्न करना चाहिये। यह विचार विक्रम विवि के पूर्व कुलपति आचार्य रामराजेश मिश्र ने शनिवार को कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित भर्तृहरि प्रसंग के शुभारंभ अवसर पर अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किये। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि साहित्य में विमर्श का चिन्तन करने पर पता चलता है कि साहित्येतर काल में विकृति की पराकाष्ठा हुई है। समरसता भारत की मूल आत्मा है। भारतीय मनीषा त्याग को परिभाषित करती है। अनेक वर्षों से भारतीय चेतना को असहिष्णुता के नाम से प्रस्तुत किया गया है। जबकि समरसता हमारी धमनियों में बहती है। जिन्होंने असहिष्णु शब्द गढ़ा वे समरसता के शत्रु हैं। समग्र उपभोगों को भोगते हुए वैराग्य की ओर जाना भर्तृहरि का संदेश है। भर्तृहरि ने राजकार्य और संन्यास के मध्य समन्वय का अनुपम उदाहरण दिया है। सारस्वत अतिथि प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि दक्षिण एशियाई संस्कृति के विकास के मूल में भर्तृहरि का प्रमाण स्पष्ट परिलक्षित होता है। भर्तृहरि के संबंध में पुरातात्त्विक साक्ष्य मिलते हैं। लोकसाक्ष्य की दृष्टि से भर्तृहरि अजर-अमर हैं। शैव-शाक्त-वैष्णव, जैन-बौद्ध आदि के सिद्धांतों का समन्वय भर्तृहरि के साहित्य में मिलता है। भर्तृहरि के माध्यम से सांस्कृतिक धाराएं उत्पन्न हुईं। इस अवसर पर अतिथियों ने अकादमी द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका ‘कालिदास’ का लोकार्पण किया। उज्जैन में आयोजित द्वि-दिवसीय भर्तृहरि प्रसंग का शनिवार को शुभारम्भ हुआ। इसका समापन रविवार सायं 5 बजे होगा। इसके अंतर्गत भर्तृहरि साहित्य पर केन्द्रित शास्त्रीय कथक एवं लोकनृत्यों की प्रस्तुति इंजी. प्रतिभा रघुवंशी के निर्देशन में प्रतिभा संगीत एवं कला संस्थान के कलाकारों द्वारा दी जाएगी। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/राजू-hindusthansamachar.in