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Elections: नहीं हैं अपने क्षेत्र से निर्वाचित प्रत्याशी से खुश तो NOTA की लें मदद, जानें क्या है नोटा?

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश में नोटा (None Of The Above) का इस्तेमाल शुरू हुआ था। अगर किसी मतदाता को अपने क्षेत्र ने खड़े हुए किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देना है तो वह नोटा का चयन कर सकता है। यह एक प्रकार से असंतोष जताने का तरीका भी है।

नोटा की शुरूआत करने का उद्देश्य नारिकों को अपना असंतोष व्यक्त करने का मौका प्रदान करना था। नोटा का सबसे पहले इस्तेमाल 2013 में पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव में किया गया था।

2004 की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सिंतबर 2013 को नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि वोट देने के अधिकार में वोट न किसी प्रत्याशी को वोट ना देने का अधिकार भी शामिल है।

सियासी दलों को जवाबदेह बनाता है नोटा

नोटा का विकल्प सियासी दलों को प्रत्याशी के चयन में जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अगर राजनीतिक दल लगातार ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारते हैं जो खरे नहीं उतरते या फिर जनता की मांगो को पूरा नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में नोटा का बटन दबाकर मतदाता अपना विरोध दर्ज करा सकते हैं। आपको बता दें कि भारत नोटा का विकल्प अपने मतदाताओं को उपलब्ध कराने वाला दुनिया का 14वां देश था।

नोटा को अधिक वोट मिले तो क्या होगा?

चुनाव आयोग के मुताबिक, नोटा के मतों को गिना जाता है। मगर इन्हें रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाता है। अगर नोटा को 100 फीसदी मत मिलते हैं तो उस निर्वाचन क्षेत्र में दोबारा चुनाव कराया जाएगा। अगर कोई प्रत्याशी एक भी वोट पाता है और बाकी मत नोटा को मिलते हैं तो वह प्रत्याशी विजेता माना जाएगा। नोटा के मतों को रद्द श्रेणी में रखा जाएगा।

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