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जम्मू-कश्मीर

‘प्रभु ने हमें जितना दिया है उसमें संतोष कर लें तो शंाति से रह सकते हैं: संत सुभाष शास्त्री‘

Raftaar Desk - P2

उधमपुर, 6 फरवरी(हि.स.)। रठियान में जारी श्रीमद् भागवत सप्ताह में शनिवार को संत सुभाष शास्त्री जी ने संगत से आह्वाहन किया कि समाज में अनेक झगड़े जहां तक कि हत्याएं केवल इसलिए हो जाती हंै कि हम वाणी का दुरूपयोग कर जाते हैं। जैसे वाणी के द्वारा तीर से चुभने वाले वचन अपमानजनक, अहितकार, द्वेष जनित, क्रोध, हिंसा, इत्यादि वाले शब्द बोल देते हंै, जिससे दूसरे के मन मंे अशांति तथा अप्रसन्नता जन्म लेती है। इस प्रकार बिना किसी कारण ही हम एक शत्रु पैदा कर लेते हैं। इसलिए सदा वाणी का उपयोग मधुरता से करने का प्रयास करें, फलस्वरूप आप मित्र बढ़ाते चले जाएंगे। शास्त्री जी ने आगे समझाया कि संसार में हर मानव चिंतित दिखता है, क्यों इसलिए कि उसे संतोष नहीं है। वह अंसतोषी हो गया है। मानव के हृदय में सदैव इच्छाएं जन्म लेती रहती हैं, किसके लिए संसारिक वस्तु, व्यक्ति एवम पदार्थों के लिए जो चिरस्थई नहीं होते। इनमें से जो भी आपको प्राप्त होगा, वह एक न एक दिन बिछुड़ ही जाएगा और फिर आपको उसके बिछुड़ने का कष्ट होगा। इसलिए हमें चाहिए कि जो कुछ भी प्रभु ने हमें दिया है उसमें संतोष कर लें तो शंाति से रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि असंतोष करना ही है तो भजन में करें, क्योंकि भजन जितना हो उतना ही कम जैसे परमार्थ जितना भी हो उतना ही थोड़ा तथा भगवान के प्रति प्रेम जितना हो, उतना ही थोड़ा। अंत में शास्त्री जी ने संगत को समझाया कि इस जगत के बंधन से मुक्त होने के लिए निरसंकल्प होना इतना सहज भी नहीं है तो फिर क्या करें ? उपाये यह है कि जगत के संकल्पों को छोड़कर भगवत संकल्प करें। ऐसा संकल्प करते हुए मुख से प्रभु के नाम का उच्चारण तथा हृदय, मन ओर आंखों में प्रभु की छवि को धारण करना चाहिए, क्योंकि ऐसा साधक सहजता से प्रभु के अनुग्रह का अधिकारी बन जाता है, इससे बढ़कर मानव को और क्या चाहिए। हिन्दुस्थान समाचार/रमेश/बलवान --------hindusthansamachar.in