The death of the last bodyguard Anen Dawa, who brought Tibetan religious leader Dalai Lama to safe India from Tibet, was 83 years old
The death of the last bodyguard Anen Dawa, who brought Tibetan religious leader Dalai Lama to safe India from Tibet, was 83 years old 
हिमाचल-प्रदेश

तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को तिब्बत से सुरक्षित भारत लाने वाले अंतिम अंगरक्षक अनेन दावा की मौत, 83 वर्ष के थे दावा

Raftaar Desk - P2

धर्मशाला, 28 दिसम्बर (हि.स.)। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के अंतिम जीवित निजी अंगरक्षक अनेन दावा का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। अमेरिका के मिनेसोटा में उन्होंने अंतिम सांस ली। वर्ष 1939 में जन्मे, अनेन दावा केवल 15 वर्ष के थे, जब वे तिब्बत के नोरबुलिंगका में दलाई लामा की व्यक्तिगत सेना में शामिल हुए। चार साल के बाद उन्हें औपचारिक रूप से सेना में शामिल किया गया और अगले चार वर्षों के लिए सेरा, ड्रेपंग और गादेन मठों में स्कूली शिक्षा के माध्यम से दलाई लामा की सेवा करने के लिए व्यक्तिगत गार्ड के रूप में काम करना जारी रखा। मार्च 1959 में घटनाओं के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ में जब तिब्बती विद्रोह को कुचल दिया गया था और चीनी सैन्य हमलों का खतरा बढ़ रहा था, उसी दौरान 17 मार्च 1959 की रात को दलाई लामा हजारों तिब्बतियों के साथ निर्वासन में आने लगे तो अनेन दावा ने तिब्बती धार्मिक गुरू के निर्वासन के सुरक्षित मार्ग को सुनिश्चित करने के लिए अपने कर्तव्यों को पूरा किया। 31 मार्च को भारत में सुरक्षित रूप से पहुंचने पर, निजी अंगरक्षकों और स्वयंसेवकों के एक समूह ने तिब्बत लौटने का फैसला किया ताकि चीनी सेना के खिलाफ प्रतिरोध खड़ा किया जा सके। उस समय उनमें से सबसे छोटे अनेन दावा और एक अन्य अंगरक्षक को दलाई लामा ने मसूरी साथ जाने के लिए कहा। दलाई लामा के निर्देशों के अनुसार वह पहले 50 छात्रों में से एक के रूप में मसूरी में स्थापित तिब्बती होम्स स्कूल में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय में अमेरिका में अपनी आगे की पढ़ाई की और बाद में बोस्टन से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1972 में वह केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कारखाने में एकाउंटेंट के रूप में सेवा करने के लिए नेपाल में तैनात रहे। बाद में 1979 से कई वर्षों तक उन्होंने मसूरी में तिब्बती होम्स स्कूल में बच्चों के स्वास्थ्य, तिब्बती संस्कृति और नैतिकता आधारित शिक्षा के लिए अथक प्रयास किया। अंत में 1996 में वह पुनर्वास नीति के माध्यम से सेवानिवृत्त होकर अमेरिका के मिनेसोटा में रहने लगे। 27 दिसम्बर को उनका निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी खांडो दावा, तीन बच्चे त्सेयांग, चोएवांग और चोएफेल के अलावा पोती जेंडेन है। हिन्दुस्थान समाचार/सतेंद्र/सुनील-hindusthansamachar.in