शिमला, 28 फरवरी (हि.स.)। हिमाचल के शिक्षा विभाग में जिला उप शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत अजय शर्मा ने महान वैज्ञानिक न्यूटन द्वारा दिये गए गति के तीसरे नियम को गलत ठहराया है। उन्होंने दावा किया है कि वह अपने प्रयोगों द्वारा तीसरे नियम की खामी को सिद्ध कर सकते हैं। इन प्रयोगों पर 10 लाख रुपये का खर्च आएगा। सरकार अगर उनके प्रयोगों को गम्भीरता से लेती है, तो भारत नोबेल प्राईज का हकदार होगा। नेशनल साइंस डे के उपलक्ष्य पर रविवार को शिमला में आयोजित प्रेस वार्ता में अजय शर्मा ने कहा कि न्यूटन के गति के तीसरे नियम में कई खामियां हैं तथा वह अपने प्रयोगों के जरिये इन खामियों को साबित करेंगे। शर्मा ने कहा कि पिछले 36 सालों से वह इस विषय पर शोध कर रहे हैं। विदेशों के नामी वैज्ञानिकों ने उन्हें जांचा परखा और बाकायदा इंटरनेशनल जनरल में प्रकाशित भी हुए हैं। अब जरूरत है कि उनके अपने देश की सरकार इसे परखे और विश्व स्तर पर इसे पहचान दिलवाए। यह कवायद भारत को नोबेल पुरस्कार दिला सकती है। अजय शर्मा ने कहा कि न्यूटन का तीसरा नियम वस्तु के आकार की अनदेखी करता है और यही नियम की महत्वपूर्ण खामी है। न्यूटन के अनुसार वस्तु चाहे गोल, अर्ध गोलाकार त्रिभुज, लम्बी पाइप, शंकु, स्पाट या अनियमित आकार की हो क्रिया और प्रतिक्रिया बराबर होनी चाहिए। वस्तु का आकार पूरी तरह बेमानी है लेकिन प्रयोगों में प्रतिक्रिया वस्तु के आकार पर निर्भर करती है। इसकी अंतिम मान्यता के लिए कुछ प्रयोगों की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि 1 अगस्त 2018 को उन्होंने न्यूटन के नियम को लेकर वाशिंगटन में अमेरिकन एसोसिएशन आफॅ फिजिक्स टीजरज के सम्मेलन में प्रेजेंटेशन दी। इस दौरान एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने कहा कि अजय शर्मा अगर न्यूटन के तीसरे नियम में प्रयोगों द्वारा वस्तु के आकार के प्रभाव को सिद्ध कर देते हैं, तो नोबेल पुरस्कार का हकदार होगा। इसी तरह केंद्रीय वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद की प्रयोगशाला नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री न्यू दिल्ली के डायरेक्टर व वरिष्ठ मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर वी पी एस अवाना ने अपनी रिपोर्ट में उनके प्रयोगों को सही ठहराया है। अजय शर्मा ने कहा कि वह 31 मार्च 2021 को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद भी दिन-रात इन प्रयोगों पर काम करने को तैयार हैं। ये प्रयोग भारत को नोबेल पुरस्कार दिला सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/उज्ज्वल/सुनील