केजरीवाल ने पूसा कृषि संस्थान का दौरा कर बायो डी-कंपोजर तकनीक को समझा
केजरीवाल ने पूसा कृषि संस्थान का दौरा कर बायो डी-कंपोजर तकनीक को समझा 
दिल्ली

केजरीवाल ने पूसा कृषि संस्थान का दौरा कर बायो डी-कंपोजर तकनीक को समझा

Raftaar Desk - P2

नई दिल्ली, 24 सितम्बर (हि.स.)। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को पूसा कृषि संस्थान में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित बाॅयो डी-कंपोजर तकनीक का निरीक्षण किया। केजरीवाल ने कहा कि यह तकनीक पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने में व्यावहारिक और काफी उपयोगी है। पूसा संस्थान द्वारा विकसित किए गए कैप्सूल का घोल बनाकर खेतों में छिड़का जाता है, जिससे पराली का डंठल गल कर खाद बन जाता है। इससे उनकी उपज बढ़ेगी और खाद का कम उपयोग करना पड़ता है। केजरीवाल ने कहा कि मैं अगले एक-दो दिन में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री से मुलाकात करके पड़ोसी राज्यों में इस तकनीक के कुशल और प्रभावी क्रियान्वयन पर चर्चा करूंगा। यह तकनीकी बहुत ही साधारण, इस्तेमाल योग्य और व्यवहारिक है, यह वैज्ञानिकों की कई वर्षों की कड़ी मेहनत और प्रयासों का परिणाम है। पूसा इंस्टीट्यूट का दौरा करने के दौरान केजरीवाल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि दिसंबर के महीने में किसान अपने खेत में खड़ी धान की पराली जलाने के लिए विवश होता है, उस जलाई गई धान की पराली का सारा धुंआ उत्तर भारत के दिल्ली सहित कई राज्यों के ऊपर छा जाता है। केजरीवाल ने कहा कि आज हम पूसा इंस्टिट्यूट में आए हुए हैं। पूसा इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर से हम लोगों ने बातचीत की। पूसा के डायरेक्टर ने एक नई किस्म की तकनीकी इजाद की है, जिसके जरिए ये कैप्सूल देते हैं। चार कैप्सूल एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते हैं और उस कैप्सूल के जरिए एक किसान लगभग 25 लीटर घोल बना लेता है, उसमें गुड़, नमक और बेसन डालकर यह घोल बनाया जाता है और जब किसान उस घोल को अपने खेत में छिड़कता है, तो पराली का जो मोटा मजबूत डंठल होता है, वह डंठल करीब 20 दिन के अंदर मुलायम होकर गल जाता है। उसके बाद किसान अपने खेत में फसल की बुवाई कर सकता है। इस तकनीक के इस्तेमाल के बाद किसान को अपने खेत में पराली को जलाने की जरूरत नहीं पड़ती है। केजरीवाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि जब किसान अपने खेत में पराली जलाता है, तो उसकी वजह से खेत की मिट्टी खराब हो जाती है। मिट्टी के अंदर जो फसल के लिए उपयोगी बैक्टीरिया और फंगस होते हैं, वो सब जलाने की वजह से मर जाते हैं। इसलिए खेत में पराली जलाने की वजह से किसान को नुकसान ही होता है। इसके जलाने से पर्यावरण प्रदूषित अलग से होता है। वहीं, इस नई तकनीक का किसान इस्तेमाल करते हैं, तो इससे मिट्टी की उत्पादन क्षमता बढ़ती है और वह खाद का काम करता है। केजरीवाल ने कहा कि कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं कि इस कैप्सूल की कीमत बहुत ही कम है। प्रति एकड़ कितनी लागत पड़ रही है, हमें ये इसकी लागत का पूरा प्रस्ताव बना कर देंगे। हालांकि इस कैप्सूल की कीमत प्रति एकड़ लगभग 150 से 250 रुपये आ रही है। हिन्दुस्थान समाचार /प्रतीक खरे-hindusthansamachar.in