नई दिल्ली, 28 अप्रैल (हि.स.)। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अब सरकार का मतलब उपराज्यपाल से होगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली में राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) कानून 2021 (जीएनटीसीडी एक्ट) को मंजूरी दिए जाने के बाद गुरुवार को इसे लागू करते हुए अधिसूचना जारी कर दी है। जिसके बाद दिल्ली सरकार के कामकाज में कई तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं। हालांकि ये संशोधन आम आदमी पार्टी (आप) को बेहद अलोकतांत्रिक लग रहा है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि ‘देश के सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पष्ट तौर पर 2018 में फैसला दिया कि दिल्ली में सरकार का मतलब लोकतांत्रिक ढंग से, जनता के वोट से चुनी हुई एक सरकार होगी, जिसकी अगुआई दिल्ली के मुख्यमंत्री करेंगे, एलजी नहीं। उस आदेश में माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने कहा कि पुलिस, पब्लिक ऑर्डर और जमीन इन तीन विषयों को छोड़कर सारे अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास होंगे।’ दिल्ली सरकार की शक्तियों में ये बदलाव होंगे कानून में किए गए संशोधन के अनुसार, अब सरकार को उपराज्यपाल के पास विधायी प्रस्ताव कम से कम 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव कम से कम 7 दिन पहले भेजने होंगे। इसके मुताबिक, दिल्ली सरकार को किसी भी कार्यकारी कदम से पहले उपराज्यपाल की सलाह लेनी होगी। इसके बाद विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक को मंजूरी देने की ताकत उपराज्यपाल के पास आ गई है। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि दिल्ली सरकार को शहर से जुड़ा कोई भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल से सलाह लेनी होगी। इसके अलावा दिल्ली सरकार अपनी ओर से कोई कानून खुद नहीं बना सकेगी। क्या है जीएनटीसीडी एक्ट गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक जीएनटीसीडी एक्ट के प्रावधान 27 अप्रैल से लागू हो गए हैं। नए कानून के मुताबिक, दिल्ली सरकार का मतलब 'उपराज्यपाल होगा और दिल्ली की सरकार को अब कोई भी कार्यकारी फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। उल्लेखनीय है कि संसद ने इस कानून को पिछले महीने पारित किया था। लोकसभा ने 22 मार्च को और राज्यसभा ने 24 मार्च को इसको मंजूरी दी थी। जब इस विधेयक को संसद ने पारित किया था तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे ‘भारतीय लोकतंत्र के लिए दुखद दिन’ करार दिया था। वहीं, केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा था कि इस संशोधन का मकसद मूल विधेयक में जो अस्पष्टता है उसे दूर करना है ताकि इसे लेकर विभिन्न अदालतों में कानून को चुनौती नहीं दी जा सके। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के 2018 के एक आदेश का हवाला भी दिया था, जिसमें कहा गया है कि उपराज्यपाल को सभी निर्णयों, प्रस्तावों और कार्यक्रमों की जानकारी देनी होगी। यदि उपराज्यपाल और मंत्रिपरिषद के बीच किसी मामले पर विचारों में भिन्नता है तो उपराज्यपाल उस मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/श्वेतांक