समलैंगिक विवाह के मद्दे पर VHP और संत समाज में रोष
समलैंगिक विवाह के मद्दे पर VHP और संत समाज में रोष 
दिल्ली

Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह के मद्दे पर VHP और संत समाज में रोष, कहा- ये हमारी संस्कृति से नहीं खाता मेल

नई दिल्ली, एजेंसी। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) दिल्ली प्रांत ने सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिक विवाह को अनुमति देने के मामले पर कड़ा विरोध जताया है। विहिप के साथ-साथ दक्षिण भारत एवं उत्तर भारत के संत समाज ने भी दुख व्यक्त करते हुए कड़ा रोष प्रकट किया है। विहिप दिल्ली प्रांत व संत समाज ने शुक्रवार को प्रेस वार्ता की। वार्ता में जैन संत पूज्य लोकेश मुनि ने कहा कि समलैंगिक विवाह भारत की संस्कृति से मेल नहीं खाता। अतः ऐसे किसी भी अधिकार को कानूनन मान्यता देना गलत है।

संविधान सबको अपने ढंग से जीने का अधिकार देता
उन्होंने कहा हम सभी भारत के संविधान और कानून का सम्मान करते हैं हम यह मानते हैं कि हमारा संविधान सबको अपने ढंग से जीने का अधिकार देता है। लेकिन निवेदन करना चाहते हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करना निश्चित रूप से भारत की सभ्यता एवं संस्कृति के खिलाफ होगा, उसके साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा। मुनि ने आगे कहा कि भारत 135 करोड़ वाली जनसंख्या वाले देश में केवल कुछ लोगों के कहने से 134 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की सभ्यता और संस्कृति को खतरे में डाल देना इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है।

राम मंदिर के लिए कोर्ट के सम्मानजनक आदेश का इंतजार किया
इस बीच विहिप के प्रांत अध्यक्ष कपिल खन्ना ने कहा कि हम भारत की न्याय व्यवस्था का सम्मान करते हैं। हमने सालों तक राम मंदिर के लिए कोर्ट के सम्मानजनक आदेश का इंतजार किया है आज भी हम भारत की न्याय व्यवस्था में पूरी श्रद्धा रखते हैं और इस व्यवस्था से अपने प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण की उपेक्षा करते हैं।

धार्मिक भावनाओं को खतरे में डालने जैसा होगा
उन्होंने कहा उपस्थित संत समाज के साथ-साथ सामाजिक व्यवस्था में भी लोग इस व्यवस्था को लेकर द्रवित और चिंतित है। यह आम धारणा है कि समलैंगिकता को मान्यता प्राप्त होने से भारत की संस्कृति और सभ्यता और भारत की मूलभूत धार्मिक भावनाओं को खतरे में डालने जैसा होगा। बौद्ध संत भंते संघप्रिय राहुल का कहना है कि समाज विवाह को परिभाषित करता है और कानून उसे केवल मान्यता देता है।

सरकार लोगों की इच्छाओं को व्यक्त करती
उन्होंने कहा कि विवाह कानून द्वारा रचित एक सामाजिक संस्था नहीं है बल्कि यह एक सदियों पुरानी संस्था है जिसे समाज ने समय के साथ परिभाषित और विकसित किया है। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव के द्वारा चुनी गई सरकार लोगों की इच्छाओं को व्यक्त करती है। विधानमंडल के माध्यम से व्यक्त की गई जन अभिव्यक्ति से विवाह जैसी संस्था में कोई भी संशोधन प्रभावी नहीं होना चाहिए। इस अवसर पर दक्षिण भारत से स्वामी शिवाजी राव, स्वामी रामानन्द स्वामिंगल, पूज्य आत्मानन्द स्वामिंगल, इस्कॉन से मुरली प्रभु सहित कई लोग मौजूद रहे।