नई दिल्ली ,27 जनवरी 2024 : हर हर महादेव , जय जय सिया राम। .. मैं इस उद्घोष के साथ अपनी लेखनी को बहुत दिनों के बाद फिर से धार देने की कोशिश में जुटा हुआ एक अदना सा व्यक्ति हूं ! कहने को जात धरम कोटि सब ठीक ही है! पर अगर कुछ ठीक नहीं चल रहा तो वो है हमारे प्रदेश की राजनीति। जी हां, मैं बात कर रहा हूं अपने गृह प्रदेश की... हां हां वही... 'आईये न हमरा बिहार में' वाला बिहार! वैसे तो यहां के लोग राजेंद्र बाबू के नाम से लेकर जगन्नाथ बाबू तक सब को जानते हैं, लेकिन असली खेला तो शुरू हुआ लालू जी के राज से और जारी है अभी तक क्योंकि बिहार में बहार है, क्योंकि अभी भी हमारे यहां नितीश कुमार है !!
ये वहीं नीतीश बाबू हैं जोनमौसम की तरह अपनी राजनीतिक विचारधारा बदल लेते हैं। नीतीश बाबू कब किस दल के साथ रहेंगे यह तो निश्चित नहीं रहता, लेकिन नीतीश बाबू ही मुखिया होंगे यह पिछले 15-16 सालों से निश्चित रहा है। लेकिन यहां मैं अपनी तरफ से एक बात क्लियर कर दूं। मैं न तो लालटेन के साथ हूं, न ही तीर कमान और न ही कमल के। एक बात और मैं बिहार में नए सिरे से पनप रहे जन सुराज के साथ भी नहीं हूं। मेरा इन सभी दलों से उतनी ही दूर का नाता है, जितना ठंड में जलते अलाव से किसी व्यक्ति का। (अंग्रेज़ी में लिख रहे होते तो यहां पर eheheh लिख देते, हंसने के लिए वो लोग हेहेहे, कि जगह ऐसा लिखते हैं।)
मैं बिहार से हूं तो बिहार की राजनीति में रुचि रखता हूं, मतलब अलाव में हाथ नहीं देता, पर उसके पास बैठकर थोड़ी इधर-उधर की खबर ले लेता हूं।
अब आते है उस असल मुद्दे पर जिसका हमने बहुत पहले ही अनुमान लगा लिया था। हमने आपसे पहले ही कह दिया था कि अब चाचा की चाय पर चर्चा हो रही है। इसका मतलब अब नीतीश जी चुनाव से पहले नये या यूं कह लें कि पुरानी अंतरआत्मा की आवाज सुनने वाले हैं।
बिहार में मकर संक्रांति यानी तिला संक्रांति का त्यौहार आया और चला गया लेकिन अगर कुछ रह गया था तो बिहार का राजनीतिक घटनाक्रम का बदलना। जो अब साकार होते नज़र आ रहा हैं। मैने इस घटनाक्रम को उसी दिन होते देख रहा था ज़ब नीतीश कुमार लालू यादव के घर दही चिवड़ा खाने गए थे।
क्योंकि राजनितिक गलियारे में इसका बहुत महत्व है। हर बार बिहार में चूड़ा- दही और तिलकुट का मिश्रण कई लोगों को अपने में समा लेता है या फिर बाहर निकाल के फेंक देता है। ये मैं नहीं बोल रहा हूं, बिहार की राजनीति को नजदीक से देखने वाले बुद्धजीवी ऐसा मानते हैं।
चाचा की रेल भी बहुत निराली चलती है, कभी चाचा खुद रेल से भी तेज़ चल के सारे स्टेशन पे पहुंच जाते हैं। तो कभी बोल देते हैं- जी मैं तो रेल का चालक बनना ही नहीं चाहता हूं। यह अलग बात है कि उनके ही सहयोगी उन्हीं के तीर पे चल के सब जगह ये बोलते रहते हैं कि चाचा ही बनेगे रेल के चालक। भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह भी गाहे-बगाहे अपने उस सहयोगी के साथ जिनके साथ कभी बैठ के एक चाय न पी हो साथ में - बहार है बहार है का गुणगान करने में लगे हुए हैं कि चच्चा कहीं न कहीं उनका भी पत्ता सेट कर ही देंगे।
मैने पहले ही कहा था अब जबकि तिला संक्रांति आ रही है और चाचा के लिए पुराने घाव उनके पुराने साथी कुरेद कुरेद के ताज़ा करने लगे होंगे। तब मैंने ऐसा अनुमान लगाया था कि चचा इस बार भी चूड़ा दही की राजनीती में किसी न किसी को तो बाहर - भीतर का पाठ पढ़ाएंगे ही। और अब जाके मेरा ये कथन सत्य हुआ है। चाचा भी अपने भतीजे को किनारे लगा कर खुद उसी किनारे की और बढ़ रहे हैं जहां से वो चले थे।
मैंने तब कहा था नीतीश चचा जिस रेल में भी बैठे उसको चलाते अपने मुताबिक ही हैं। और हो ऐसा ही रहा हैं। बात ऐसे हैं कि चचा के बिहार में अनगिनत रुप है। कभी ये NDA का हिस्सा होते हैं तो कभी राजद के साथ मिल कर INDI गठबंधन को साकार करने में लग जाते हैं। लेकिन चचा एक बात का हमेशा ख्याल रखते हैं कि वो चाहें जहां भी रहें मुखिया जरूर बने रहें। क्योंकि वो भी 'एक बिहारी सब पे भारी' वाले भैया ही है।
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