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असम सीएम डॉ सरमा ने कहा संस्कृति के लिए हमारे महापुरुषों ने भी आवाज उठाई

गुवाहाटी, 21 जुलाई (हि.स.)। मुख्यमंत्री डॉ हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि हमारी सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिए सिर्फ आज हम ही आवाज नहीं उठा रहे हैं बल्कि हमारे महापुरुषों ने भी आवाज उठाई थी। उन्होंने गोपीनाथ बरदलै से लेकर अंबिकागिरी रायचौधुरी तक द्वारा इस संदर्भ में लिखी गई पंक्तियों को अपने संबोधन में उद्धृत करते हुए कहा कि इन सभी ने पूर्वी बंगाल के मुसलमानों से असम की सभ्यता और संस्कृति के खतरा को लेकर समय-समय पर चिंता जताई है।

यहां तक कि इन महापुरुषों ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर भारत को सेकुलर देश घोषित करने की बात पर भी अपना मंतव्य दिया था।

ये बातें मुख्यमंत्री डॉ सरमा ने मंगलवार को राष्ट्रीय गुवाहाटी के पांजाबारी स्थित श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के ऑडियोरियम में स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डा. मोहन राव भागवत की उपस्थिति में गौहाटी विश्वविद्यलाय के राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. ननी गोपाल महंत की पुस्तक 'सिटिजनशिप डिबेट ओवर एनआरसी एंड सीएए : असम और इतिहास की राजनीति' के विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए कहीं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर दिल्ली के शाहीन बाग में चले विरोध का संबंध असम के विरोध से नहीं है। उन्होंने कहा कि असम में सीएए के विरोध का स्लोगन यह है कि असम में किसी भी जाति, धर्म का व्यक्ति को नागरिक नहीं बनना चाहिए। जबकि देश के अन्य हिस्सों में सीएए का विरोध यह कह कर किया जा रहा है कि अन्य धर्मावलंबियों के साथ-साथ मुसलमानों को भी नागरिकता दी जानी चाहिए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि सीएए के जरिए देश में लाला लाजपत राय जैसे देशभक्तों के वंशजों को भारत में नागरिकता दी गई है। उन्होंने कहा कि देश के पूर्वी बंगाल, सिंध, बलूचिस्तान, पश्चिमी पंजाब आदि में निवास करने वाले देशभक्तों ने आजादी की लड़ाई इसलिए नहीं लड़ी थी कि उन्हें एक मुस्लिम राष्ट्र का नागरिक बनना पड़े।

मुख्यमंत्री ने प्राे. ननी गोपाल महंत द्वारा लिखी गई पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि इस पुस्तक के जरिए असम के बौद्धिक जगत में सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर चर्चा शुरू हो सकेगी।

उन्होंने कहा कि असम को घुसपैठिए मुसलमानों से बचाने की जरूरत है क्योंकि, यह हमारी जमीन पर तेजी से दखल कर रहे हैं। यही वजह है कि स्थानीय असमिया जनजाति हो या असमिया मुसलमानों आदि को स्थापित करने के लिए भूमि की कमी हो रही है। अपने संबोधन में उन्होंने इस पूरे विषय में विस्तार पूर्वक प्रकाश डालते हुए पुस्तक के लेखक प्रो महंत को इसके लिए बधाई दी।

हिन्दुस्थान समाचार/ श्रीप्रकाश/ अरविंद/रामानुज