‘उदारचरितानाम् वसुधैव कुटुम्बकम्’ ।
उपरोक्त पंक्तियों का अर्थ है कि उदारचरित वाले मनुष्य के लिए विश्व की घर होता है। यह पंक्तियां हिन्दू सनातन धर्म के मुख्य दर्शन और सिद्धांत "समतावादी और साम्यवादी दृष्टिकोण" को प्रमाणित करते हैं। हिन्दू धर्म की विचारधारा पूर्णतः समतावादी रही है। जाति भेद और वर्ण भेद को बाद की संस्कृतियों ने शुरू किया लेकिन अगर मूल सनातन धर्म को समझा जाए तो वह सबको एक ही नजर से देखना पसंद करते थे।
वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना
हिन्दू सनातन धर्म में इस पृथ्वी को घर माना गया है। आपसी मतभेद भूलाकर हर वर्ण और जाति के लोगों के साथ रहने की सीख देता है। सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं पर अगर प्रकाश डाले तो पाएंगे कि किस तरह हिन्दू धर्म समानता पर जोर देता है:
* कृष्ण जी ने एक उच्च वर्ग के होते हुए भी सुदामा जैसे ब्राह्मण से मित्रता की और निभाई।
* रामायण के प्रमुख पात्र और त्रिदेवों में एक भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने एक नाविक की मदद से गंगा पार की तो वहीं शबरी के जूठे फल भी खाएं।
* राजा हरिश्चंद्र, कर्ण आदि कई पात्रों की कहानी यह सुनिश्चित करती है कि पुरातन सनातन धर्म में समानता और समन्वयवादी विचारधारा थी।
कैसे बनी वर्ग और जाति प्रथा
हिन्दू धर्म में जाति के आधार पर वर्ण भेद पूर्णत: पाखंड का रूप है जिसे बाद में जनता के बीच स्वीकार्य होने के कारण स्वीकार कर लिया गया। यह पाखंड झूठ की नींव पर किया गया।
समन्वयवादी विचारधारा का समर्थक हिंदू धर्म
हिंदू धर्म विभिन्न धर्मों की विचारधाराओं और आस्था का सदैव आदर करता रहा है। हिंदू धर्म के इसी लचीलेपन के कारण कई उपजातियों का जन्म हुआ। यहां हर इंसान को अपने अनुसार जीने की आजादी है।
हिंदू धर्म कभी किसी को अपनाने के लिए जोर नहीं देता। बल्कि यह तो अपने अनुयायियों को भी जीवन में पूरी सहूलियत देने के लिए खुद में बदलाव के लिए तैयार रहता है। हिंदू धर्म एक धर्म ना होकर जीने का तरीका है जो सभी को एक साथ लेकर चलने और साथ मिलकर रहने पर जोर देता है।