सोते वक्त सांस के साथ तेज आवाज और वाइब्रेशन (Sound & Vibration) आना खर्राटे (Snoring) कहलाता है। खर्राटे लेना साधारण-सी परेशानी है, लेकिन जब यह बीमारी का रूप ले लेती है तो गंभीर समस्या बन जाती है। सांस लेने में बार-बार रुकावट होने पर शरीर में ऑक्सिजन का लेवल कम हो जाता है, जिससे बीपी बढ़ जाता है। शरीर में ऑक्सिजन कम होते ही दिल को ऑक्सिजन के लिए ज्यादा प्रेशर लगाना पड़ता है। जब यह समस्या बढ़ जाती है तो हार्ट अटैक भी हो सकता है।
कई बार व्यक्ति रात को सही सोता है, लेकिन सुबह पता चलता है कि हार्ट अटैक से मौत हो गई, इसकी वजह सांस की यह दिक्कत हो सकती है। कई बार खर्राटों की समस्या दिमाग पर भी असर डालती है। शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा कम होने और कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा बढऩे से दिमाग पर बेवजह दबाव बढ़ जाता है, जिससे स्ट्रोक्स (Stroks) की आशंका काफी बढ़ जाती है।
नाक में रुकावट होने पर जब कोई शख्स मुंह खोलकर सोता है तो बिना छनी हवा मुंह के रास्ते व्यक्ति के अंदर जाती है, जिससे फेफड़ों को नुकसान होता है। रात को नींद पूरी न होने पर दिन भर आलस और थकान महसूस होती है, चिड़चिड़ापन और नाखुशी भी नजर आती है। इससे उसका वजन बढ़ना शुरु हो जाता है। वजन बढ़ने से और ज्यादा खर्राटे आने लगते हैं।
कई बार खर्राटे हल्की आवाज में आते हैं लेकिन अक्सर ये आवाजें इतनी तेज और कठोर होती हैं कि साथ सोने वाले शख्स की नींद उड़ा देती हैं। खर्राटों का इलाज समय पर न किया जाए तो यह स्लीप एप्निया (Sleep Apnea) की वजह बन सकता है।
ज्यादातर लोगों को लगता है कि खर्राटे आने की वजह ज्यादा थकान है इसलिए वे इसे अनदेखा कर देते हैं। इससे समस्या गंभीर हो जाती है। दरअसल, सोते समय सांस में रुकावट खर्राटे आने की मुख्य वजह है। गले के पिछले हिस्से के संकरे हो जाने पर ऑक्सिजन संकरी जगह से होती हुई जाती है, जिससे आसपास के टिशू वाइब्रेट (Tissue Vibrate) होते हैं। इसी से खर्राटे आते हैं।
कई बार लोग पीठ के बल सोते हैं, जिससे जीभ पीछे की तरफ हो जाती है। तालू के पीछे यूव्यल (तालू के पीछे थोड़ा-सा लटका हुआ मांस) पर जाकर लग जाती है, जिससे सांस लेने और छोड़ने में रुकावट आने लग जाती है। इससे सांस के साथ आवाज और वाइब्रेशन होने लगता है। नीचे वाले जबड़े का छोटा होना भी खर्राटे आने का एक कारण है। जब व्यक्ति का जबड़ा सामान्य से छोटा होता है तो लेटने पर उसकी जीभ पीछे की तरफ हो जाती है और सांस की नली को ब्लॉक कर देती है। ऐसे में सांस लेने और छोडऩे के लिए प्रेशर लगाना पड़ता है, जिस कारण वाइब्रेशन होता है। नाक की हड्डी टेढ़ी होना (Crooked Nose Bone) और उसमें मांस बढ़ा (Meat soar) होना। इसमें भी सांस लेने के लिए प्रेशर लगाना पड़ता है।