सोरायसिस त्वचा की ऊपरी सतह का चर्म रोग है जिससे त्वचा में कोशिकाओं (Cells) की तादाद बढने लगती है और त्वचा के ऊपर मोटी परत जम जाती है। सोरायसिस की बीमारी में सामान्यतः त्वचा पर लाल रंग की सतह उभरकर आती है। यह खोपड़ी (Scalp), हाथ-पाँव अथवा हाथ की हथेलियों, पाँव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। सोरियासिस रोग (Psoriasis) संक्रामक किस्म का रोग नहीं है। रोगी के संपर्क से अन्य लोगों को कोई खतरा नहीं है।
यह रोग वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है लेकिन 10 वर्ष से कम आयु में यह रोग बहुत कम होता है। पंद्रह से चालिस की उम्र में यह रोग ज्यादा होता है। लगभग 1 से 3 प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीडित हैं। सोरायसिस एक बार ठीक हो जाने के बाद कुछ समय पश्चात पुनः उभर जाता है और कभी-कभी अधिक उग्रता के साथ प्रकट होता है। ग्रीष्मऋतु की अपेक्षा शीतऋतु में इसका प्रकोप अधिक होता है। यह रोग अनुवांशिक भी हो सकता है। कई लोग इसे चर्मरोग (Charm Rog) या छालरोग भी कहते हैं।
सोरायसिस रोग (A type of Skin Infection) के मुख्य कारण दो ही माने जाते हैं एक आनु्वंशिक और दूसरा पर्यावरण।
1. आनुवांशिक: डॉक्टर मानते हैं कि सोरायसिस आनुवांशिक कारणों से भी आ सकता है।
2. पर्यावरण: लगातार कैमिक्लस और प्रदूषण के संपर्क में रहने कारण भी सोरायसिस हो सकता है। यह बीमारी सर्दियों में अधिक होती है। ज्यादा देर धूप में रहने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है।
सोरायसिस से बचाव और उपचार का पहला केन्द्र है त्वचा की देखभाल करना। सोरायसिस होने पर निम्न उपाय भी फायदेमंद होते हैं:
नोट: आयुर्वेदिक रिसर्च सेंटर के अध्यक्ष डॉ. अंबालकर ने इसी बीमारी को दूर करने का बीड़ा उठाया है। अब तक वह 50 हजार मरीजों का इलाज कर चुके हैं। इस के लिए इस साल उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड में भी दर्ज किया गया है। दिल्ली में उन्होंने राजौरी गार्डन में आयुर्वेदिक रिसर्च सेंटर (Ayurvedic Treatment of Psoriasis) खोला है।