12 Jyotirlinga Mantra of Shiva
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मंत्र

12 Jyotirlinga: ज्योतिर्लिंग स्तुति मंत्र के जाप से करें भगवान भोलेनाथ की पूजा, घर में बनी रहेगी सुख शांति

नई दिल्ली रफ्तार डेस्क।19 March 2024। भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए हर व्यक्ति उनकी पूजा अर्चना करता है। लेकिन भगवान के 12 ज्योतिर्लिंग की पूजा करने का विशेष फल मिलता है। आप भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्रों का भी जब कर सकते हैं।

पूजा करने का महत्व

भगवान भोलेनाथ विशेष रूप से 12 रूपों और स्थानों में ज्योतिर्लिंगों के रूप में’ हैं। की उपासना का विशेष महत्व है। सभी बारह स्थानों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए हैं और इस सभी ज्योतिर्लिंग में वे ज्योति रूप में स्वयं विराजमान हैं। ये पावन ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की उपासना करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे व्यक्ति को मोक्ष भी प्राप्त होता है।

पूजा विधि

आप को प्रातः काल उठकर स्नान आदि करने के बाद किसी मंदिर में या घर पर ही शिवजी की पूजा करें। और 12 ज्योतिर्लिंग को स्मरण करके व्रत करने का प्रण लें। शिवजी को धतूरा, बेल पत्र आदि चढ़ाएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद कुश के आसन पर बैठकर मन ही मन द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति का पाठ करें। कम से कम 108 बार इस स्तुति का पाठ करें।

12 ज्योतिर्लिंग के नाम

  • सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: गुजरात

  • मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: आन्ध्र प्रदेश

  • महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: मध्य प्रदेश

  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग: मध्य प्रदेश

  • केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग: उत्तराखंड

  • भीमशंकर ज्योतिर्लिंग: महाराष्ट्र

  • विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: उत्तर प्रदेश

  • त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: महाराष्ट्र

  • वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: झारखण्ड

  • नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: गुजरात

  • रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग: तमिलनाडु

  • घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: महाराष्ट्र

ज्योतिर्लिंग स्तुति मंत्र

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।

उज्जयिन्यां महाकालमोंकारंममलेश्वरम्॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।

सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥

वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।

हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।

सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति।

कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥:

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