हिन्दू धर्म में ऐसे कई देवी-देवता हैं जिनका जिक्र पुराणों में तो नहीं है लेकिन आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बहुत ज्यादा है। ऐसी ही एक देवी हैं मां संतोषी माता। संतोषी माता का जिक्र बेशक पुराणों में ना मिले लेकिन इनकी पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। शुक्रवार के दिन मां संतोषी के विशेष व्रत भी रखे जाते हैं।
संतोषी माता से जुड़ी कहानियां (Santoshi Mata Story)
मान्यता है कि संतोषी माता गणेश जी और रिद्धी-सिद्धि की पुत्री हैं, हालांकि इस बात का जिक्र किसी पुराण में नहीं है। संतोषी माता को "संतोष" की देवी माना जाता है, यह जिन पर प्रसन्न होती हैं उसके जीवन में सभी प्रकार के सुख आते हैं और वह जीवन में संतुष्ट रहता है। कहते हैं कि एक बार गणेश जी की बहन मनसा देवी उन्हें रक्षाबंधन पर राखी बांधने आई। उस समय वहां गणेश जी के पुत्र शुभ और लाभ भी थे। पिता के हाथों में राखी बंधते देख उन्होंने गणेश जी से एक बहन की कामना की। गणेश जी ने शुभ और लाभ की बात को मानते हुए एक देवी उत्पन्न की जिन्हें संतोषी मां के नाम से जाना जाता है।
संतोष की देवी : संतोषी माता मान्यता है संतोषी माता सुख-शान्ति तथा मनोकामनाओं की पूर्ति कर शोक विपत्ति चिन्ता परेशानियों को दूर कर देती हैं। सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के शुक्रवार तक व्रत किये जाने का विधान है। उत्तर भारत में संतोषी माता के व्रत सर्वाधिक किए जाते हैं। संतोषी माता की प्रसिद्धि में 1970 के दशक में आई फिल्म "जय संतोषी माता" का विशेष योगदान रहा है।
संतोषी माता के व्रत में विशेष नियम (Santoshi Mata Vrat Details)
संतोषी माता का व्रत शुक्रवार के दिन किया जाता है।
इस दिन गुड और चने का प्रसाद बांटने की प्रथा है।
मान्यता है कि इस दिन न तो खट्टी वस्तु खानी चाहिए और न ही उनका स्पर्श करना चाहिए। इस दिन केवल व्रतधारी के लिए ही नहीं अपितु परिवार के हरेक सदस्य के लिए खट्टी वस्तु वर्जित मानी गयी गई है।
शुक्रवार व्रत 16 शुक्रवार किए जाते हैं।